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थमते कदम आ जाइये

चाँद नभ में आ गया, अब आप भी आ जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
नींद सहलाती है सबको, पर मुझे छूती नहीं.
जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.
प्यासी नज़रों को हसीं, चेहरा दिखा तो जाइये.
कल्पना मेरी बिलखती, वेदना सुन जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
कब तलक मैं यूँ अकेला, इस तरह जी पाउँगा.
इस निशा- नागिन के विष को, किस तरह पी पाउँगा.
इस जहर में अधर का, मधु रस मिला तो जाइये
याद जो हरदम रहे, वो बात तो कर जाइये
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
धीरे-धीरे नील नभ, धरती पे झुकता आ रहा है.
बादलों की गोद में अब, चाँद धंसता जा जा रहा है.
तन्हा है मापतपुरी, अब साथ तो दे जाइये.
सो गया सारा शहर, थमते कदम आ जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 8, 2010 at 3:37pm
बहुत अच्छे सतीश जी - बहुत ही अच्छा गीत लिखा है, शब्द बहुत कोमल हैं और अभिव्यक्ति भी उतनी ही सुंदर ! मेरे कुछ सुझाव हैं अगर आपको पसंद आयें :

(1). //जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.//
// आँख जानें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.//

यहाँ कविता की निरंतरता बाधित हो रही प्रतीत होती है, इसलिए अगर यहाँ "जाने" शब्द का कर्म बदल दें और "आँखों" की जगह अगर "आँख" कर दें तो कविता की रवानी बरकरार रहेगी !

(2). //धीरे-धीरे नील नभ, धरती पे झुकता आ रहा है.
बादलों की गोद में अब, चाँद धंसता जा रहा है.//
इन पंक्तियों के अखीर पर शब्द "है" फालतू है, अगर इसको डिलीट कर दें तो बेहतर होगा, अर्थ भी वही रहेंगे और निरंतरता भी बनी रहेगी !
Comment by asha pandey ojha on June 7, 2010 at 10:10am
चाँद नभ में आ गया, अब आप भी आ जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
नींद सहलाती है सबको, पर मुझे छूती नहीं.
जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.waah Intazar kee ek mithee kashish hai aapke is geet me ..muhbbat kee mahak bhee ..bahut sundar
Comment by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 3:00pm
सो गया सारा शहर, थमते कदम आ जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
sundar ati sundar khubsurat
Comment by Kanchan Pandey on June 1, 2010 at 2:07pm
satish jee, aapki kaarigari ki mai kayal hu, bilkul sadharan aur har kisi ko samajh mey aaney waley shabdo ka paryog kar aap bahut hi achhi rachna kar daaltey hai, bahut badhiya,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 1, 2010 at 9:01am
याद जो हरदम रहे, वो बात तो कर जाइये
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये,

जय हो सतीश भाई, फिर एक बेहतरीन रचना प्रस्तुत किया है आप ने, जबरदस्त अभिव्यक्ति है,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 31, 2010 at 9:46pm
चाँद नभ में आ गया, अब आप भी आ जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
bahut hi badhiya rachna hai satish bhai jee......
Comment by दुष्यंत सेवक on May 31, 2010 at 6:39pm
इस जहर में अधर का, मधु रस मिला तो जाइये बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत अच्छे सतीश जी
बादलों की गोद में अब, चाँद धंसता जा जा रहा है.
तन्हा है मापतपुरी, अब साथ तो दे जाइये.
सो गया सारा शहर, थमते कदम आ जाइये.
निश्चय ही इतने मासूम शब्दो को सुनकर तो महबूब को आना ही होगा....अति सुंदर रचना मपतपुरी जी
Comment by Admin on May 31, 2010 at 2:32pm
नींद सहलाती है सबको, पर मुझे छूती नहीं.
जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.
प्यासी नज़रों को हसीं, चेहरा दिखा तो जाइये.
कल्पना मेरी बिलखती, वेदना सुन जाइये.

वाह सतीश जी वाह, गज़ब लिखा है आपने ,बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है ये, आप की प्रत्येक रचना कुछ अलग रंग लिये हुवे रहती है, ये भी रचना एक अलग रंग मे रंगी है, बहुत बहुत धन्यबाद मापतपुरी जी,

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