For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नूतन साल आया (गज़ल) - कल्पना रामानी

212221222122

 

पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।

जाग रे इंसान, नूतन साल आया।

 

ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,

थम गए तूफान, नूतन साल आया।

 

गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,

छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।

 

कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,

बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया। 

 

मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से,

हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।

 

पूछता है रब कि  तेरी, क्या रज़ा है,

माँग ले वरदान, नूतन साल आया।

 

आसमाँ आतुर तुझे हिय से लगाने,

चढ़ नए सोपान, नूतन साल आया।

 

मनुजता तेरी, कहीं प्राणी  जतन बिन,

खो न दे पहचान, नूतन साल आया।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 918

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ajay sharma on January 6, 2014 at 11:32pm

ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,

थम गए तूफान, नूतन साल आया।

..................................

दाद क़ुबूल फारमाएं 

Comment by ajay sharma on January 6, 2014 at 11:29pm

कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,

बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया। 

................................बहुत ही अच्छे अशआर हुए है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 11:20pm

//...शब्दों को इधर उधर करके लिखना तो काव्य में सामान्य बात ही है।..//

जितना आजतक मैंने जाना है कई महत्त्वपूर्ण तथ्यों में से यह तथ्य भी अत्यंत विशेष है जिसके कारण ग़ज़ल अन्य काव्य-विधाओं से अलग है. मिसरे यदि सीधे वाक्य की तरह हो सके तो शेर अत्यंत सफल हुआ माना जाता है.

आपने इस ग़ज़ल को यदि नवगीत की तरह अपनाया है तो यह आपकी अवधारणा है. अन्यथा पूरी ग़ज़ल में एकसारता नहीं होती. और मुसल्सल ग़ज़ल भी विषयानुसार होती है.  जैसे इस ग़ज़ल में आपने विषय एक ही रखा है.

सादर

Comment by कल्पना रामानी on January 6, 2014 at 10:35pm

लेकिन आदरणीय, पूरी गजल एक ही भाव पर है, किसी भी शेर में तुम का प्रयोग नहीं है। यहाँ ऐसा भी विचार किया था " पूछता है रब कि  तेरी क्या रजा है?"लेकिन 'पूछता है'और 'पूछ रहा है' में बहुत फर्क है,   वाक्य अशुद्ध लगता है और शब्दों को इधर उधर करके लिखना तो काव्य में सामान्य बात ही है।   अब आप ही सुझाएँ कि गजल में क्या स्वीकार्य होगा।आप अनुभवी हैं। मेरे लिए आगे भी आसानी होगी। सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 9:17pm

//आपकी सुझाई हुई पंक्तियों से "तुम्हारी"शब्द से व्याकरण दोष उत्पन्न हो जाता है, यह मैंने भी सोचा था//

तुम्हारी के साथ सानी का मांग ले वरदान .. जैसा वाक्यांश अवश्य ही शतुर्ग़ुर्बा का दोष पैदा करेगा.

लेकिन ऐसे एकाकी संशोधन की सलाह दिया ही कहाँ है मैंने ? संशोधन जब भी होगा तो सर्वांग में होगा !

दूसरे, संशोधन की आवश्यकता ही क्यों ? इसे किसी संशोधन को स्वीकारने से पहले जान लेना अधिक समीचीन होगा. तो कारण यह है कि आपकी वर्तमान उक्त पंक्ति हिन्दी व्याकरण के लिहाज से भले शुद्ध हो ग़ज़ल के हिसाब से उचित नहीं है, जहाँ सीधी-सीधी बात की जाती है. ग़ज़ल के मिसरों के कई महत्त्वपूर्ण गुणों में से यह भी एक गुण है.  

सादर

Comment by कल्पना रामानी on January 6, 2014 at 7:15pm

आदरणीय सौरभ जी, गजल की सराहना द्वारा उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार

आपकी सुझाई हुई पंक्तियों से "तुम्हारी"शब्द से व्याकरण दोष उत्पन्न हो जाता है, यह मैंने भी सोचा था,  और तेरी शब्द मनुजता के लिए ही है, यह शे'र मनुजता की मात्राओं के कारण ही गड़बड़ हुआ है।यह अरुण अनंत जी की टिप्पणी के बाद बदलकर लिखा है।  इसके लिए अभी तक उचित विकल्प नहीं सूझा। या तो हटा दूँगी या फिर संशोधित करूंगी।   सादर

Comment by कल्पना रामानी on January 6, 2014 at 7:09pm

आदरणीय गणेश जी, आपकी रचना पर उपस्थिति मनोबल में वृद्धि कर देती है। आपका हृदय से आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:55pm

बहुत बढिया ग़ज़ल हुई है, आदरणीया.. .

रब रहा है पूछ तेरी, क्या रज़ा है   को  पूछता है रब तुम्हारी क्या रज़ा है .. करना शायद उचित हो.

जतन पुल्लिंग शब्द है, आदरणीया.  या मनुजता  के लिए तेरी  शब्द है तो फिर मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक करना उचित होगा.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 5, 2014 at 8:56pm

वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, प्रत्येक शेर एक उम्दा कहन के साथ प्रस्तुत हुआ है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया कल्पना रामानी जी |

Comment by कल्पना रामानी on January 2, 2014 at 2:51pm

आदरणीय अरुण जी, गजल पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद। आपका संकेत 'मनुज'शब्द की ओर है, मैं समझ गई। अक्सर तीन मात्रिक शब्दों में गलती हो जाती है। एडिट कर देती हूँ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
4 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
17 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
yesterday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service