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पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।
जाग रे इंसान, नूतन साल आया।
ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,
थम गए तूफान, नूतन साल आया।
गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,
छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।
कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,
बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया।
मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से,
हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।
पूछता है रब कि तेरी, क्या रज़ा है,
माँग ले वरदान, नूतन साल आया।
आसमाँ आतुर तुझे हिय से लगाने,
चढ़ नए सोपान, नूतन साल आया।
मनुजता तेरी, कहीं प्राणी जतन बिन,
खो न दे पहचान, नूतन साल आया।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह वाह आदरणीया बेहद शानदार ग़ज़ल कही है आपने सभी शेर एक से बढ़कर एक लगे अंतिम शेर पुनः देख लें. इस उम्दा ग़ज़ल हेतु ढेरों दिली बधाई स्वीकारें.
आदरणीय जितेंद्र जी हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय नादिर खान जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आदरणीय गिरिराज जी, हृदय से आभार
अदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, सादर धन्यवाद
आदरणीया माहेश्वरी जी, सुदर प्रतिक्रियाके लिए सादर धन्यवाद
आदरणीया प्राची जी, उत्साह बढ़ती हुई सुंदर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद
गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,
छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।
कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,
बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया।
यत्न कर प्राणी, कहीं तेरी मनुजता,
खो न दे पहचान, नूतन साल आया।
आपकी भावनाओं की स्पष्टता शुद्धता और ऊंचाई पर हर बार दिल वाह कर उठता है...
ये तीन शेर बहुत पसंद आये
आपको इस ग़ज़ल की और नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीया कल्पना रामानी जी
कल्पनाजी, नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ इस सुंदर रचना की भी हार्दिक बधाई
आदरणीया कल्पनाजी, नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ आपको इस अति सुंदर रचना की भी हार्दिक बधाई॥
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