For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नदी मर गयी,

बहुत तड़पने के बाद.

घाव मवादी था.

आती है अब महक.

अब शहर में गिद्ध नहीं आते.

कुत्ते लगाते हैं दौड़

उसकी मृत देह पर

फिर भाग खड़े होते हैं.

नदी जवान थी, खूबसूरत.

वह थी चिर यौवना.

भर देती थी जीवन से.

खेलती थी , करती थी अठखेलियाँ,

छूकर कभी इस किनारे को

कभी उस किनारे को.

उछालती जल, करती कल्लोल,

भिंगोती तट के पीपल को.

पुरबाई में पीपल का पेड़

झूम कर करता था अभिषेक.

करता अपने प्रिय पातों का अर्पण

प्रेम के भेट स्वरुप ..

दाह से पहले , ठंढे शीतल जल में

जब मृत शरीर को कराते  थे स्नान,

आत्मा तृप्त हो उठती थी .

चहचहा उठता था  घने पीपल पर

बैठा पक्षियों का समूह ,

मानो गवाही देता था

स्वर्ग की सीढ़ी के उतरने का.

जीवन तभी तक है

जब तक गति है.

नदी किनारे रहने वाला हंसों का जोड़ा

उड़ गया ....

नये  ठौर की तलाश में ..

वहां अब उग आयीं है

कुछ  झुग्गियां

जहाँ कुत्ते नहीं रहते

रहते है आदमी

जिन्हें मंजूर होता है

नरक ,

दो वक्त की रोटियों के बदले

शहर बड़ा हो गया

और नदी मर गयी ..

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on January 10, 2014 at 7:30pm

कविता को पसंद करने के लिए एवं विषय को समर्थन देने के लिए दिल से आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 10, 2014 at 9:42am

शहर की संजीवनी रही नदी का सिमटते सिकुढ़ते सूखते जाना और नदी की मृतप्राय देह पर बस्तियों का उग आना जिस संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत हुआ है..उस पर निःशब्द हूँ .

बहुत उन्नत प्रस्तुति 

हार्दिक बधाई 

Comment by Neeraj Neer on January 9, 2014 at 8:55am

आदरणीय सौरभ जी आपकी टिप्पणी ने रचना को पूर्णता प्रदान कर दी ... आपकी प्रतिक्रिया की मुझे प्रतीक्षा रहती है .. सादर आभार उत्साह वर्धन के लिए .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 8, 2014 at 11:59pm

भाई नीरजजी.. इस कविता की अंतर्दशा ने भीतर तक सिहरा दिया है.

मैं आपकी पंक्तियों के साथ स्वर्णरेखा और हुण्डरू की यात्रा कर आया और वाकई हरियाली को लगातार भूरा रंग में परिणत होते देखा है. शहर को नदी का गर्भ भरते देखा है और उस बलत्कृता को लगातार मरते हुए देखा-महसूसा है.. सिकिदरी में.
आपकी इस उन्नत भावदशा की प्रस्तुति के लिए हृदय से बधाई.
शुभ-शुभ

Comment by Neeraj Neer on January 6, 2014 at 8:54am

आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपाई जी किन शब्दों में आपका आभार प्रकट करूँ .. बहुत बहुत धन्यवाद इतना उत्साह वर्धन के लिए ..

Comment by Neeraj Neer on January 6, 2014 at 8:51am
आदरणीय विजय निकोरे साहब आपका हार्दिक आभार ..
Comment by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 8:28pm

वाह !! बहुत सुंदर !! , शब्द कुछ कम पड़ रहे है शायद इस रचना की तारीफ के लिए , बहुत बहुत सुंदर रचना , बधाई आपको आ0 नीरज जी । 

Comment by vijay nikore on January 5, 2014 at 10:41am

बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Neeraj Neer on January 5, 2014 at 9:18am

आदरणीय अरुण शर्मा जी आपका हार्दिक धन्यवाद .

Comment by Neeraj Neer on January 5, 2014 at 9:17am

हार्दिक आभार आदरणीय भाई बृजेश  नीरज जी .. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service