मेरे खोये हुये लम्हात के ग़म को,
हकीकत के सीने में दफ़्न,
कुछ इच्छाओं की
उन धुँधली यादों को,
मेरे सपनों की लाशों को,
अब तक ढो रहा हूँ मैं…
कई दफे
ज़िन्दगी करीब से गुज़री,
मगर,
मैं ही जी न पाया..
आज मुझे लगता है
मैंने बहुत कुछ खो दिया,
पहले जो खोया है..
उसे याद कर,
और फिर,
उन्हीं यादों में खोकर,
एक लम्बा सफर तय किया,
मगर,
आज मुझे लगा
कि मैं वहीं हूँ!
वहीं हूँ जहाँ से चला था……
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्याम नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय विजिश जी रचना की सराहना के लिये आपका आभार
आदरणीय नीरज नीर जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
भाई शिज्जु जी बेहद सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई आपको
कई दफे
ज़िन्दगी करीब से गुज़री,
मगर,
मैं ही जी न पाया. सबसे बेहतरीन पंक्ति । बधाई…
सच कहा आदरणीय शिज्जू जी बहुत बार आदमी यह महसूस करता है कि इतनी भागदौड़ की और प्रगति नाममात्र को भी नहीं हुई लेकिन कुछ देर रुक कर फिर उसी भागदौड़ में लग जाता है
मेरे एक पडोसी हैं दो शादी की हैं उन्होंने एक रोज मुझे कहने लगे शादी का लड्डू जो खाये वो पछताए जो न खाये वो भी पछताए
मैंने कहा वो तो ठीक है पर ये क्या दो बार खाकर दो बार पछताने वाली कौन सी बात हुयी एक बार खा लिए पछता लिए बहुत हुआ
आदमी तो रोज रोज वही गलतियां करता है नयी गलतियां करे तो भी ठीक
जीवन एक पाठशाला है यहाँ भी हम एक कक्षा में उत्तीर्ण होकर अगली कक्षा में प्रवेश पाते हैं प्रौढ़ होते हैं आगे बढ़ते हैं
पर आदमी है एक ही कक्षा को बार बार ढोये जा रहा है वो रोज रोज वही काम करता है
और फिर कहता है आज भी वही पर हूँ तो किसकी कृपा से अपनी ही कृपा से
जब भीतर की समझ गहरी हो जाती है तो आदमी आगे बढ़ता है और और शांत होता जाता है सुलझता जाता है
और आनंदित होता जाता है सारे द्वन्द समाप्त सारे उलझाव ख़तम हुए सारे झगडे फसाद ख़तम हुए समझ लिया पूरी तरह जीवन को
तो पहुंचे आप मंज़िल पर ,
सादर आदरणीय शिज्जू भाई ।
आदरणीय शिज्जू भाई , रचना पर मेरी हार्दिक बधाई ॥
bahut hi sanzeeda ahsasaat hai .......
मैंने सुना है चार मित्रों ने एक रात खूब शराब पी और रात में मौज़ मस्ती के
लिए सोचा क्यों ना नौका बिहार किया जाए फिर सभी पहुँच गए नौका बिहार को
सभी ने एक एक नाव ली और रात भर नाव चलायी सुबह जब उषा की पहली किरण के साथ
हवा के ठन्डे झोंको ने उन्हें छुआ तो वो ज़रा होश में आये और सोचा रात भर नाव चलायी है
और काफी दूर पहुँच गए होंगे पर उन्होंने देखा वो तो कहीं नही पहुँचे उन्होंने जहाँ से शुरू किया था
वो तो वही पर हैं वो अपनी नाव किनारे बंधी रस्सी से छुड़ाना ही भूल गए थे वो बेहोश थे
और हर आदमी बेहोश है आज अगर हर बुज़ुर्ग से पूछो तो वो अपने अतीत में ही खोया है
वो कहता है मै नाव घुमाता रहा हूँ जीवन में बहुत भाग दौड़ कि है बड़े संघर्ष किये हैं पर वो जानता
है वो कहीं पहुंचा नही है आदरणीय वीनस जी लिखते हैं
ज़िंदगी से खेलने वालों जरा यह कीजिए
ढूढिए ऐसा कोई जो आखिरश हारा न हो
इंसान कि तो हालत ये है कि वो एक गोले में चल रहा है और कोई कहे कि आप कहीं पहुंचोगे नही तो वो जल्दी
जल्दी चलने लगे कि अब पहुंचूंगा कोई कहे नही आप फिर भी कहीं नही पहुंचोगे तो वो दौड़ने लगे कि देखो अब तो
पहुंचूंगा पर वो पागल है वो तो एक चक्र में यात्रा कर रहा है आप अगर अपना विश्लेषण करें तो आप समझ पाएंगे
रोज रोज वही सुख वही दुःख ज़िन्दगी में नया क्या है
बहार हाल कविता बहुत खूबसूरत है और बहुत बहुत बधाई प्रेषित है ।
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