मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल
22- 22- 22- 22- 22- 2
सच्चाई को जब अपना ईमान किया
सारी दुनिया को उसने हैरान किया
मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं
किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया
चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ
बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया
छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी
अपने छोटे से घर को ऐवान किया
मायूस हुआ तेरी तीखी बातों से
आईना दिखलाया ये एहसान किया
उम्मीदों के फूल खिले थे सहरा में
आग लगा क्यूँ उसको फिर वीरान किया
हाथ न आया लोगों के कोई इल्ज़ाम
बस मेरी मर्गे वफा का एलान किया
छोटे से इक झोंके को जाने कैसे
काबू करके उसने यूँ तूफान किया
रात गुज़ारा तन्हा मैंने आँखों में
तेरी यादों को अपना मेहमान किया
औराक़ =पन्ने, दीवान = किसी शायर के ग़ज़लों की किताब, ऐवान = महल
मर्गे वफा = वफा की मौत
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
रात गुज़ारा तन्हा मैंने आँखों में
तेरी यादों को अपना मेहमान किया.....क्या बात है.
आदरणीय शिज्जू भाई , बढ़िया गज़ल कही है , बहुत खूब , बहुत बहुत बधाइयाँ ॥
छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी
अपने छोटे से घर को ऐवान किया
मायूस हुआ तेरी तीखी बातों से
आईना दिखलाया ये एहसान किया
रात गुज़ारा तन्हा मैंने आँखों में
तेरी यादों को अपना मेहमान किया --- इन शे रों के लिये विशेष बधाइयाँ ।
शानदार ,,,शिज्जू जी,,,,सुन्दर शिल्प निर्वाहन,,,,,,क्या बात है,,,,,,
shandaar gajal shijju ji hardik badhai
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