दुर्मिल सवैया !! मां शारदे !!
सहसा प्रतिभा समभाष करें, तुम आदि-अनादि अनन्त गुणी।
तप से, वर से नित धन्य करें, कवि-लेखक संग महन्त गुणी।।
गुण-दोष समान विचार रखें, नित नूतन कल्प भनन्त गुणी।
भव सागर में जब याद करें, पतवार लिए तुम सन्त गुणी।।
के0पी0सत्यम मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वर्णिक छंदों की रचना वर्णों के समूह और उनकी आवृतियों के आधार पर होती है. लेकिन शब्द भी ऐसे रखे जायें कि उनकी संप्रषणीयता प्रभावी हो.
इस प्रयास हेतु धन्यवाद.
आदरणीय केवल भाई जी माँ शारदे को नमन, आपको हृदयतल से ढेरों ढेरों बधाइयाँ माँ शारदे को समर्पित बेहद सुन्दर भावपूर्ण सवैया रचा है आपने. जय हो
तप से, वर से नित धन्य करें, कवि-लेखक संग महन्त गुणी।।...बढ़िया रचना ...
माँ शारद के चरणों में समर्पित इस दुर्मिल सवैया ने भाव-विभोर कर दिया. बधाइयाँ......
भनंत शब्द मेरे लिए बिलकुल ही नया शब्द है, कृपया इसका अर्थ बताने का कष्ट करें............
सच कहूँ सही आनंद आपकी सनातनी छंदबद्ध रचना में ही आता है, आदरणीय केवल भाई इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करेंौ
केवल भाई अपकी रचनाएँ दुर्लभ हो गयी है....आज देखकर मन खुश हो गया.. अच्छी रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई.
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ... |
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