१. “ मैं ”
मैं-मैं तू करके हुआ, भौतिक सुख में लीन
अहम् भाव और देह की, रहा बजाता बीन
रहा बजाता बीन , नहीं ‘मैं’ को पहचाना
परम तत्व को भूल ,जोड़ता रहा खजाना
क्या दिखलाकर दाँत, करेगा केवल हैं हैं ?
जब पूछें यमराज, कहाँ बतला तेरा मैं ||
२. “ तुम “
तुम-मैं मैं-तुम एक है , परम ब्रम्ह का अंश
जाति- धर्म इसका नहीं , और न कोई वंश
और न कोई वंश ,यही तो अजर - अमर है
अविनाशी है रूह , और काया नश्वर है
कर इसका अहसास,ह्रदय में रुमझुम रुमझुम
परम ब्रम्ह का अंश , एक है तुम-मैं मैं-तुम ||
३. “ हम “
‘हम’ नन्हा-सा शब्द है,अणु जैसा ही जान
शक्ति कल्पनातीत है,‘हम’ से कौन महान
‘हम’ से कौन महान, एकता का परिचायक
‘हम’ देता सुख शांति, रहा हरदम ‘हम’ नायक
जीना सब के साथ , नहीं रहना तन्हा-सा
अणु जैसा ही जान,शब्द है ‘हम’ नन्हा-सा ||
अरूण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 अरुण कुमार जी संदेश युक्त कुण्डलिया के लिए आपको तहे दिल से बधाई ।
बहुत सुन्दर कुंडलियां आदरणीय अरुण निगम जी। । हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय अरुणजी, आपकी यह छंद-रचना कई मायनों में सार्थक है. इनके माध्यम से संज्ञा-इंगितों को परिभाषित करने का सुन्दर प्रयास हुआ है. वहीं, भावदशा को गहनता से साझा किया गया है.
आपको बार-बार बधाइयाँ और असीम शुभकामनाएँ
सादर
अरूण कुमार जी बहुत बढिया..
उच्च भाव लिए तीनों छंद कुण्डलिया की हार्दिक बधाई अरुण भाई॥
तीनों छंद सार्थक संदेश देते हुए बहुत सुंदर हैं। हार्दिक बधाई आपको आदरणीय अरुण निगम जी
अय हय हय आदरणीय गुरुदेव श्री जय हो आपकी मुग्ध हूँ मैं, तुम और हम की परिभाषा से. तीनो ही कुण्डलिया छंद हृदयस्पर्शी हैं सुन्दर सन्देश प्रद हैं हृदयतल से बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आदरणीय अरुण भाई , मै, तुम , हम पर आपकी दार्शनिक , आध्यात्मिक कुंडलिया बहुत बढिया लगी , आपको बहुत बधाइयाँ ॥
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