श्रीराम कुछ क्रोधित होकर बोले, “हनुमान तुमसे सीता की ख़बर लाने को कहा था। तुमने लंका में आग क्यों लगा दी?”
हनुमान शांत भाव से बोले, “प्रभो! जब तक हम जैसे आदिवासी पहाड़ों की गुफाओं, जंगलों और खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं तब तक दुनिया में किसी को भी सोने के महल में रहने का अधिकार नहीं है। मुझे धरती पर हमेशा रहना है अतः मैं कभी मार्क्स, कभी मिन्ह, कभी लेनिन तो कभी माओ बनकर जनमानस तक ये संदेश पहुँचाता रहूँगा। सोने की लंका जलाकर मैंने इसकी शुरुआत की है प्रभो।“
हनुमान के इतना कहते ही श्रीराम ने उठकर उन्हें अपनी सीने से लगा लिया और सारी वानर सेना एक साथ बोल उठी, “कामरेड हनुमान की जय”।
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी लाल रंग का जिक्र करके तो आपने गजब ही कर दिया। इसके बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं था। बहुत बहुत धन्यवाद लघुकथा पसंद करने के लिए।
एक ऐसी घटना जो पीढ़ियों से कही-सुनी जा रही है उसे आज के संदर्भ दे कर पुनः उद्धृत करने की परंपरा कोई नयी नहीं है. यही गोसाईं जी ने भी किया था जब रामायण से प्रभावित होकर उसके एक हिस्से को अवधी में अपने मंतव्यों के साथ पद्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया. और, उनके साथ यही कार्य इस भूमि के करीब सभी भाषाओं के कई रचनाकारों ने किया, गद्य में, तो पद्य में रूप भी. कइयों ने पूरी घटना को नया अर्थ और कलेवर दिया तो कुछ पूरी उक्त कथा से कोई एक या दो अंश ले कर उसको आधुनिक, सामाजिक या वैचारिक रूप दे गये.
आपकी लघुकथा ऐसी ही एक सफल कोशिश है. इसके लिए हार्दिक बधाई आदरणीय.
और ’कामरेड हनुमान’ .. ;-)))
भाई यह तो ज्यादती है बेचारों पर ! एक तो ऐसे ही वे हाशिये पर धकेले जाने के कारण अर्थ का अनर्थ करने पर उतारू हैं. उस पर से आपने लाल्-लाल जले पर शुद्ध देहाती नमक छिड़क दिया.
शुभ-शुभ
धर्मेन्द्र भाई , लघु कथा की बधाई। समतावादी हनुमान की जय।
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय धर्मेन्द्र जी, बधाई स्वीकारें
सुन्दर लघुकथा ..
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें.................... |
बहुत बढ़िया लघुकथा
वाह आदरणीय धर्मेन्द्र सर बहुत बढ़िया लघुकथा
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , पुरानी बात को आपने बहुत नये ढ़ंग से लघुकथा मे कही है ॥ वाह भाई , आपको हार्दिक बधाई ॥
क्या कहानी रची है ...लाखों वर्ष पुरानी कथा ..एकदम नये कलेवर में ! बहुत सार्थक ...उत्तम रचना
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