कभी सोचा न था ...
कितनी कलरफुल थी
मेरी दुनिया
अब तुम्हारे बाद
ब्लैक एंड वाइट होकर रह जाएगी
कभी सोचा न था ...
अलमारी में पड़े
लाल गुलाबी कपड़े
मुंह चिड़ाएंगे और पूछेंगे
मुझसे कई सवाल
कभी सोचा न था ..
आइने के सामने आज
खड़े होने में डर लगेगा
क्योंकि
खो दूंगी वो अक्स
जो मुझे निहारा करता था
कभी सोचा न था ...
बड़ी बेपरवाह थी जिन्दगी
बस तुम्हे बताकर
दुनिया की परवाह किये बिना
स्वछन्द घूमा करती थी
अब घर से बाहर कदम रखने से पहले
मेरा ही ज़मीर मुझसे सवाल पूछेगा
कभी सोचा न था.....
मैं भी एक दिन
रंगीन उड़ती तितली की तरह
अपने पर खो दूंगीं
कटी पतंग सी हो जाऊँगी
कभी सोचा न था .....
फैसले तो पहले भी
खुद लिया करती थी
पर उन पर
मोहर लगाने वाला ही नहीं रहेगा
कभी सोचा न था...
कभी कोई फॉर्म भरते हुए
मेरी कलम
विवाहिता के कालम पर
अटक जाएगी
कभी सोचा न था .....
.................................
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
कुछ भी कहाँ रुकता कभी ?!!..
आदरणीय सौरभ sir पता नहीं कब दर्द कलम के रास्ते शब्दों में बिखर गया ,आइन्दा कोशिश करुँगी
जब जब ऐसी रचनाएँ दोबारा पढ़ती हूँ तो मेरा भी दर्द आँसू बन बह जाता है आप सबकी हौंसला अफसाई से मन जरा हल्का हो जाता है |
निश्शब्द हूँ, आदरणीया.
कई-कई बिम्ब लगातार नये होते गये हैं अपने नये-नये मिले अर्थों के साथ. और.... अंत तक आते-आते हूक सी उठती है और आँखें बेसाख़्ता सजल हो गयीं.
भौतिक बहाव ही नहीं नदी की अंतरधारा भी बहुत कुछ कहती है. उसके साथ बहते जाना उर्ध्व गति के साथ त्वरण में आने का कारण हुआ करता है.
आगे लिखते रहिये.. खूब-खूब-खूब लिखिये. मगर, प्लीज, ऐसे मत लिखियेगा.
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बहुत मार्मिक आदरणीया सरिता जी। । हार्दिक बधाई आपको
दर्द बोलेगा और हम
बधाई देंगे
कभी सोचा न था
आदरणीया सरिता जी, दिल को भेदती अभिव्यक्ति ......
सभी का हार्दिक आभार
मेरी दिली आवाज आपके दिल तक पहुँची
मन का मर्म उतर आया है, उफ्फ..............................
आदरणीया सरिता जी , एक एक शब्द आँसुओं को सोखे हुये लग रहे हैं , बहुत मर्मस्पर्शी रचना है , दिल से कही बात सीधे दिल तक पहुंच रही है ॥ आपको अनेकों बधाइयाँ ॥
बहुत मर्मस्पर्शी रचना सरीता जी.....दिल छू गया. शुभकामनाएँ
कभी सोचा न था...
कभी कोई फॉर्म भरते हुए
मेरी कलम
विवाहिता के कालम पर
अटक जाएगी
कभी सोचा न था .....
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति, सरिता जी मन को छू गई आपकी कविता। दिल से बधाई आपको
सादर
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