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किनारा इस सरिता का

तू बहादुर बेटी है पंजाब की
तू शान आन और बान है हमारे घर की
तू झाँसी की रानी है
तुझे क्या डर अकेले
दुनिया के किसी भी कोने में जा सकती हो
हाँ
ऐसे ही तो कहते थे ना हमेशा
जब कहती थी
मेरे साथ कहीं चलने को
आज समझा रहे थे मुझे
पगली क्यों रोती है ?
तेरे अंग संग हूँ हमेशा
तेरे साथ अपनी दोनों भुजाएं
अपने दो बेटे छोड़ आया हूँ
तुम्हे जरुरत नहीं
किसी का मुँह ताकने की
दोस्त जो नहीं पूछते मत कर चिंता
जो साथ हैं उनका कर शुक्रिया
और बढती चल निरंतर
हमारे सपने पूरे करने
जो छोड़ आया हूँ अधूरे तेरे सहारे
मुझे विश्वास है तू पूरा करेगी उनको
अब किसको कहूँगी संग चलने को ???
''मैं हूँ ना''
आपको चिंता करने की जरुरत नहीं
तो शायद कहा होगा बहुतों ने
दोस्तों ने रिश्तेदारों ने
कौन खड़ा हुआ हमारे साथ उस घडी में ?
उनका अहसान वाकई नहीं उतार पाएंगे कभी
मेरे लिए तो आप हो ना
हमेशा मेरा संभल बन, मार्गदर्शक बन
मुझे प्रेरणा देते हो
सुन रहे हो ना आप
ऐसा कहते कहते आँख जो खुली
तो तलाश थी उस अक्स की
जो मुझे चुप करा रहा था
पर कहीं नहीं था
नहीं नहीं यहीं कहीं था
या है
किनारा इस सरिता का
सरिता जिसका काम ही है
मुश्किलों को लांघना निरंतर बढ़ना

..........................................

........मौलिक व् अप्रकाशित.........

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2014 at 10:47am

मुश्किल वक्त में जब कोइ साथ न दे... तो किसी अपने के अदृश्य आवरण का संबल ही सबसे बड़ी शक्ति होता है... सदेह स्वरुप नहीं नहीं, वरन भाव रूप ही सर्वशक्तिमान है... फिर कोइ अकेली नारी भला निर्बला कैसे? 

आत्मविश्वास को अपने ही भीतर टटोलती इस अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई , हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by vijay nikore on January 18, 2014 at 12:45pm

भावपूर्ण रचना के लिए बधाई, आदरणीया सरिता जी।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 18, 2014 at 9:13am

बहुत सुंदर रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया सरिता जी

Comment by रमेश कुमार चौहान on January 17, 2014 at 8:49pm

सुंदर रचना  के लिये बधाई  आदरणीया

Comment by Sarita Bhatia on January 17, 2014 at 10:08am

सभी दोस्तों का हार्दिक आभार ,मार्गदर्शन करते रहें |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2014 at 11:59pm

चरैवेति का आह्वान करती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई. ईश्वर सबल रखे, रचनाकर्म सार्थक होता चले..

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 10:53pm

आदरणीय सरिता जी , अपने साथ बहा ले जने वाली बहुत भाव पूर्ण रचाना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by coontee mukerji on January 16, 2014 at 9:17pm

अच्छी रचना के लिये हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 16, 2014 at 8:18pm

आदरणीया सरिता जी बेहतरीन रचना है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 6:32pm

अच्छी रचना है , अंत बहुत अच्छा लगा । आ0 सरिता जी बधाई आपको । 

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