दिलों को जो सुहाते हैं /
दिलों पे जाँ लुटाते हैं /
निगाहों से क़त्ल करके
मुझे कातिल बनाते हैं /
दिलों के हैं अजब रिश्ते
सदा अपने निभाते हैं /
यूँ पल पल मर रही हूँ मैं
मुझे जिन्दा बताते हैं /
सभी अपने तुम्हारे बिन
मुझे जीना सिखाते हैं /
सुना है ऐसे में अपने
भी दामन छोड़ जाते हैं /
.....................................
..मौलिक व् अप्रकाशित....
Comment
हृदयस्पर्शी भावों को सुन्दर ग़ज़ल का रूप मिला है. बधाई, आदरणीया सरिता जी..
क़त्ल लिखा है तो कतल न पढ़ें न बह्र में बाँधे... उसे कतल ही लिखें/ उर्दू लिहाज़ में फिर अक्षरी बनाये रखने का आग्रह उचित नहीं.
सादर
यूँ पल पल मर रही हूँ मैं
मुझे जिन्दा बताते हैं /...................बहुत खूब
सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० सरिता भाटिया जी
शुभकामनाएं
आदरणीया सरिता जी, बहुत मर्मस्पर्शी गजल पर बधाई स्वीकारे
सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय शिज्जू जी हार्दिक आभार
प्रिय अरुण शुक्रिया ,स्नेह बनाये रखें |
आदरणीया सरिता जी अच्छी ह्रदयस्पर्शी ग़ज़ल है बधाई स्वीकार करें
आदरणीय सरिता जी व्याकुल मन से निकली बेहद सुन्दर ग़ज़ल. सभी अशआर पसंद आये ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.
वंदना जी हार्दिक आभार
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