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याद है मुझे
उसका वो पागलपन
लिखता मेरे लिए प्रेम कवितायेँ
जिनमें होते मेरे लिए कई प्रेम सवाल
उसमें ही छुपी होती उसकी बेपनाह ख़ुशी
क्योंकि जानता न था वो मेरे जवाब
वो उसकी आजाद दुनिया थी
जिसमें नहीं था किसी का दखल
उसके दिल के दरवाजे पर खड़ी रहती मैं
उस पार से उससे बतियाती
उसका पा न सकना मुझे
मेरा खिलखिला कर हँसना
और टाल देना उसका प्रेम अनुरोध
देता उसको दर्द असहनीय
जैसा आसमान में कोई तारा टूटता
और अन्दर टूट जाते उसके ख़्वाब
............................
....मौलिक व् अप्रकाशित ......

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 2:07am

अति उन्नत भावों को आपने सरल शब्दों की परिसीमा में रखा है, आदरणीया..

सादर बधाइयाँ.

Comment by Sarita Bhatia on January 27, 2014 at 5:45pm

प्रिय अरुण हार्दिक आभार स्नेह बनाये रखें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 27, 2014 at 4:22pm

प्रेमानुरोध के आत्मीय अठखेलियों के स्वरुप को सुन्दरता से अतुकांत में प्रस्तुत किया है आ० सरिता भाटिया जी 

हार्दिक शुभकामनाएं इस प्रस्तुति पर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 24, 2014 at 4:49pm

आदरणीया सरिता जी बेहद सुन्दर अतुकांत रचना बन पड़ी है हार्दिक बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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