याद है मुझे
उसका वो पागलपन
लिखता मेरे लिए प्रेम कवितायेँ
जिनमें होते मेरे लिए कई प्रेम सवाल
उसमें ही छुपी होती उसकी बेपनाह ख़ुशी
क्योंकि जानता न था वो मेरे जवाब
वो उसकी आजाद दुनिया थी
जिसमें नहीं था किसी का दखल
उसके दिल के दरवाजे पर खड़ी रहती मैं
उस पार से उससे बतियाती
उसका पा न सकना मुझे
मेरा खिलखिला कर हँसना
और टाल देना उसका प्रेम अनुरोध
देता उसको दर्द असहनीय
जैसा आसमान में कोई तारा टूटता
और अन्दर टूट जाते उसके ख़्वाब
............................
....मौलिक व् अप्रकाशित ......
Comment
अति उन्नत भावों को आपने सरल शब्दों की परिसीमा में रखा है, आदरणीया..
सादर बधाइयाँ.
प्रिय अरुण हार्दिक आभार स्नेह बनाये रखें
प्रेमानुरोध के आत्मीय अठखेलियों के स्वरुप को सुन्दरता से अतुकांत में प्रस्तुत किया है आ० सरिता भाटिया जी
हार्दिक शुभकामनाएं इस प्रस्तुति पर
आदरणीया सरिता जी बेहद सुन्दर अतुकांत रचना बन पड़ी है हार्दिक बधाई स्वीकारें.
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