बड़ी मुश्किल से कुछ 'अपने' मिले हमको ज़माने में
कहीं उनको न खो दूँ ख्वाहिशें अपनी जुटाने में /
बने जो नाम के अपने हैं उनसे दूरियाँ अच्छी
मिलेगा क्या भला नजदीकियां उनसे बढ़ाने में/
उजाले छोड़े हैं तेरे लिए रहना सदा रोशन
अँधेरे रास हैं आए वफ़ा तुझसे निभाने में /
हसीं यादों ने छोड़े हैं सफ़र में ऐसे कुछ लम्हे
रँगें हैं हाथ अपने अब निशाँ उनके मिटाने में /
दिलों को तोड़ते हैं जो विदा कर यार को ऐसे
जो थामे धडकनें तेरी न डर अपना बनाने में /
हुई खामोश क्यों सरिता है तू आधार जीवन का
गँवाना अब नहीं तुम वक्त खुद को आजमाने में
.................मौलिक व् अप्रकाशित............
Comment
आपकी यह एक बहुत ही प्रभावशाली ग़ज़ल साझा हुई है. हार्दिक बधाई.
दिये गये सुझावों पर ध्यान दीजियेगा
शुभ-शुभ
प्रिय अरुण उत्साहित करने एवं मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार
भाई लक्ष्मण जी हार्दिक आभार
आदरणीया वंदना जी आभार
आदरणीय गिरिराज जी हमेशा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीया सरिता जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने बेहद भावपूर्ण खूबसूरत ग़ज़ल के दिली दाद कुबूल फरमाएं.
आदरणीया सरिता बहन ,एक भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .
हसीं यादों ने छोड़े हैं सफ़र में ऐसे कुछ लम्हे
रँगें हैं हाथ अपने अब निशाँ उनके मिटाने में
बहुत खूब .
बहुत सुन्दर भाव आदरणीया सरिता जी
आदरणीया सरिता जी , जीवन की सच्चाइयों को समझाती, स्वीकारती आपके गज़ल बहुत सुन्दर बन पड़ी है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
दो बातें कहना चाह्ता हूँ - अँधेरे रास हैं आए को अँधेरे रास आये है , जादा अच्छा लगेगा शायद ,
और - रंगे -22 को रँगे 12 करना मेरे खयाल से सही नही है ॥
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