For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अँधेरे रास हैं आए वफ़ा तुझसे निभाने में [गजल]

बड़ी मुश्किल से कुछ 'अपने' मिले हमको ज़माने में
कहीं उनको न खो दूँ ख्वाहिशें अपनी जुटाने में /


बने जो नाम के अपने हैं उनसे दूरियाँ अच्छी
मिलेगा क्या भला नजदीकियां उनसे बढ़ाने में/


उजाले छोड़े हैं तेरे लिए रहना सदा रोशन
अँधेरे रास हैं आए वफ़ा तुझसे निभाने में /


हसीं यादों ने छोड़े हैं सफ़र में ऐसे कुछ लम्हे
रँगें हैं हाथ अपने अब निशाँ उनके मिटाने में /


दिलों को तोड़ते हैं जो विदा कर यार को ऐसे
जो थामे धडकनें तेरी न डर अपना बनाने में /


हुई खामोश क्यों सरिता है तू आधार जीवन का
गँवाना अब नहीं तुम वक्त खुद को आजमाने में

.................मौलिक व् अप्रकाशित............

Views: 523

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 2:21am

आपकी यह एक बहुत ही प्रभावशाली ग़ज़ल साझा हुई है.  हार्दिक बधाई. 

दिये गये सुझावों पर ध्यान दीजियेगा

शुभ-शुभ

Comment by Sarita Bhatia on January 27, 2014 at 5:39pm

प्रिय अरुण उत्साहित करने एवं मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on January 27, 2014 at 5:38pm

भाई लक्ष्मण जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on January 27, 2014 at 5:38pm

आदरणीया वंदना जी आभार 

Comment by Sarita Bhatia on January 27, 2014 at 5:37pm

आदरणीय गिरिराज जी हमेशा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 27, 2014 at 10:38am

आदरणीया सरिता जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने बेहद भावपूर्ण खूबसूरत ग़ज़ल के दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2014 at 6:15am

आदरणीया सरिता बहन ,एक भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

हसीं यादों ने छोड़े हैं सफ़र में ऐसे कुछ लम्हे
रँगें हैं हाथ अपने अब निशाँ उनके मिटाने में

बहुत खूब .

Comment by vandana on January 25, 2014 at 6:03am

बहुत सुन्दर भाव आदरणीया सरिता जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 24, 2014 at 9:49pm

आदरणीया सरिता जी , जीवन की सच्चाइयों को समझाती, स्वीकारती आपके गज़ल बहुत सुन्दर बन पड़ी है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

 दो बातें कहना चाह्ता हूँ - अँधेरे रास हैं आए को  अँधेरे रास आये है , जादा अच्छा लगेगा शायद  ,

और - रंगे -22 को रँगे 12 करना मेरे खयाल से सही नही है ॥    

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service