For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

था मेरा, जितना भी था, जैसा भी था, मेरा तो था

बस न पाया , क्या हुआ , कुछ वक़्त वो , ठहरा तो था
वो था मेरा , जितना भी था , जैसा भी था , मेरा तो था

साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था

आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी
बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था

हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय"
ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था

उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं , मुंतज़िर
दरिया मेरे एहसास का , उसके लिए गहरा तो था ?

अजय कुमार शर्मा
प्रथम , मौलिक व अप्रकाशित

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ajay sharma on January 20, 2014 at 11:11pm

veenus ji apka gazal par aana hua ,,mai danya hi ho gaya ............sudhar ki aage koshish karta rahoonga .........shukriya   

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 3:29am

भाई ये ग़ज़ल एक शानदार ग़ज़ल का बेहतर कच्चा माल साबित हो सकती है मगर इसे शानदार ग़ज़ल होने के लिए अभी बहुत समय और मेहनत की ज़रुरत है ...
मश्क करें तो कई गिरहें खुलेंगी ... एक नमूना देखें >>>>

साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था

साथ उनका आखिरश मुझको न मिल पाया मगर 
कुछ मलाल उनको भी है, ये आसरा रहता तो था

Comment by MAHIMA SHREE on January 14, 2014 at 10:16pm

उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं , मुंतज़िर
दरिया मेरे एहसास का , उसके लिए गहरा तो था ?.....वाह वाह बेहतरीन  गज़ल ... हार्दिक बधाई सादर

Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 10:07pm

बहुत सुंदर रचना भाई जी   // हार्दिक बधाई आपको   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2014 at 8:48am

आदरणीय अजय भाई , बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है , आपको बहुत बधाइयाँ ॥

उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं , मुंतज़िर
दरिया मेरे एहसास का , उसके लिए गहरा तो था ? ------ लाजवाब !! ढेरों बधाइयाँ ॥

Comment by coontee mukerji on January 11, 2014 at 4:30pm

एक सुंदर रचना केलिये आपको बधाई

Comment by ajay sharma on January 11, 2014 at 3:33pm

thanks akhilesh sir 

Comment by ajay sharma on January 11, 2014 at 3:32pm

हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय" 
ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था

 

के स्थान पर कृपया पढ़ें

हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय" 

ख़ासियत थी , इक मगर , कैसा भी था , बहरा तो था

Comment by Abhinav Arun on January 11, 2014 at 2:50pm

साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था

आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी
बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था

                   …  क्या कहने श्री अजय जी दिलकश कलाम वाह दिली मुबारकबाद कबूलें !!

Comment by Shyam Narain Verma on January 11, 2014 at 1:25pm
बहुत खूब , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
23 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service