बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२
रस्ते में जिस्म आया मंजिल तलक न पहुँचे
आँखों में जो न उतरे वो दिल तलक न पहुँचे
मंजिल मिली जिन्हें भी मँझधार में, उन्हीं पर
कसता जहान ताना, साहिल तलक न पहुँचे
जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी
यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे
मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना
पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे
घटता है आज गर तो कल बढ़ भी जायेगा, पर
जानम ये प्यार अपना बस निल तलक न पहुँचे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी
यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे.............bahut sundar
जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी
यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे
मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना
पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है ये दो शेर बहुत पसंद आये
हार्दिक बधाई
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , बहुत लाजवाब गज़ल कही है , आपको ढेरों बधाइयाँ ॥
जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी
यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे ----------- बहुत लाजवाब शे र लगा , बहुत बधाई ॥
सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय भाई जी .... हार्दिक बधाई आपको
जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी
यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे
मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना
पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे
दो भाव एक प्रयास.. यानि उम्दा !
वाह वाह !!
जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी
यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे
मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना
पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे
घटता है आज गर तो कल बढ़ भी जायेगा, पर
जानम ये प्यार अपना बस निल तलक न पहुँचे.... वाह वाह बहुत खूब आ. धर्मेन्द्र जी हार्दिक बधाई प्रेषित है ..सादर
इस खूबसूरत रचना की हार्दिक बधाई ... |
जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी
यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे
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