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अब राजनीति सबकी रगों में समा गई
विश्वास खो गया,तो कंही आस्था गई ।।
मैं देखता हूँ मेरे नगर में ये क्या हुआ,
लडकी खुशी-खुशी से ही इज्जत लुटा गई।
हर मोड पर जो शहर के आवारगी खडी,
मैं क्या करूँ बजुर्गों की चिन्ता बढा गई।
बादल न जाने किसके हवन पर गया कंही,
रूठी हुई सी तन्हा अकेली हवा गई।
महफिल में ही किसी ने मेरी बात छेड दी,
सुनते ही इतना रूप की गागर लजा गई।
मैं इन्तजार में खडा था रेलगाडी की,
पागल हवा अकेली थी,नज़रें लडा गई।
यह ग़ज़ल- मौलिक व अप्रकाशित है।
Comment
annapurna bajpai, आपका स्नेह मिला ।। बहुत अच्छा लगा।। धन्यवाद
भाई सूबे सिंह जी, बढ़िया ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई
मैं देखता हूँ मेरे नगर में ये क्या हुआ,
लडकी खुशी-खुशी से ही इज्जत लुटा गई
अति आधुनिकता पर कहा गया यह शेर लाजवाब है .
अच्छी ग़ज़ल हुई है! आपको हार्दिक आभार!
आदरणीय सही शब्द ' कहीं ' होता है.
सभी शेअर लाजवाब है । बहुत बहुत बधाई
भाई सूबे सिंह सुजान जी, ग़ज़ल बढ़िया हुई है जिसके लिए आपको दिली बधाई देता हूँ. तीसरे, पांचवें और छठे शेअर में तकाबुल-ए-रदीफैन नामक ऐब है, उन अशआर पर दोबारा नज़र-ए-सानी फरमा लें.
अति सुंदर गजल हेतु बहुत बधाई आपको ।
गुमनाम जी तहे-दिल से शुक्रिया.....हृदयग्राही टिप्पणी आये तो मन पुलकित हो ही जाता है।
जिस शेर को आपने पसंद किया है। यह हाल आज के समय में पूरे देश के हो गये हैं। जो कि बहुत ही चिन्तनीय है।
coontee mukerji, कुन्ती जी, जरूर एक्सीडेंट जैसे स्वभाविक होता है। ऐसे ही कहा गया है।। आपका बेहद शुक्रिया
जब किसी की हृदयग्राही टिप्पणी आये तो मन पुलकित हो ही जाता है। फिर से धन्यवाद।
Er. Ganesh Jee "Bagi, जी नमस्कार आपकी , तरफ से बधाई , आई आपका बेहद शुक्रिया
जब किसी की हृदयग्राही टिप्पणी आये तो मन पुलकित हो ही जाता है। फिर से धन्यवाद।
Meena Pathak, जी आपकी तारीफ से मन पुलकित हो गया।। आपका विशेष आभार।
जब किसी की हृदयग्राही टिप्पणी आये तो मन पुलकित हो ही जाता है। फिर से धन्यवाद।
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