रिश्तों का अलंकार बनूँगी माँ
इंद्र्धनुष के समाये हें मुझमें सातों रंग
हर कली में ममता का श्रंगार करूंगी माँ।
बंद कली खिल जाने दे, नई सृष्टि रच जाने दे,
इस जग में आकर प्रकृति का उपहार बनूँगी माँ।
माँ तू अपना ही अस्तित्व मिटाने में लगी,
गुनहगार बन क्यूँ लिंगानुपात घटाने में लगी।
तेरे कलेजे का टुकड़ा हूँ, मैं तेरा ही तो मुखड़ा हूँ
आँगन में आकर तेरी पायल की झनकार बनूंगी माँ।
माँ तेरी ममता आज क्यूँ इस तरह बिखरने लगी
सारी इंसानियत तेरे इस कदम से सिहरने लगी.
बेशक तेरी कोख में बंद हूँ, पर मैं मुकम्मल छंद हूँ,
दुनियाँ में आकर रिश्तों का अलंकार बनूँगी माँ।
(मौलिक और अप्रकाशित)
डॉ० ह्रदेश चौधरी
Comment
एक बहुत ही दर्दीले विषय पर अति सुन्दर, मार्मिक अभिव्यक्ति। बधाई, आदरणीया ह्र्देश जी।
सादर,
विजय निकोर
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.. .
आदरणीया डॉ. साहिबा बेहद सुन्दर प्रस्तुति रचना का भाव दिल को छू गया. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
बेशक तेरी कोख में बंद हूँ, पर मैं मुकम्मल छंद हूँ,
दुनियाँ में आकर रिश्तों का अलंकार बनूँगी माँ। ... इन दो पंकियों पर विशेष बधाई स्वीकारें.
अति सुंदर रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया हृदेश जी
आदरणीया , बहुत सुन्दर प्रस्तुति है ॥ आपको बधाई ॥
अति सुन्दर हृदेश जी..... बधाई हो एक अच्छी रचना हेतु !
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया। ……। हार्दिक बधाई आपको
गर्भस्थ कन्या की माँ से जीवन की याचना बहुत सुन्दर लगी
हार्दिक बधाई इस सार्थक सुन्दर रचना पर आ० डॉ० हृदेश जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online