आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,
अब उन्हें मुझे पूरा करना है।
माना बहुत दूर है किनारा मेरा,
पर उस तक मुझे पहुँचना है।
कुछ भूल रहा था मेरा हृदय,
कुछ ध्यान भटक गया था।
थी घोर निराशा मुझे घेरे हुए,
जिसमें जीवन अटक गया था।
तुमने मुझे आगे बढ़ाकर कहा,
नहीं,अभी तुम्हें ऐसे रूकना है।
आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,
अब उन्हें मुझे पूरा करना है।
मेरे टूटे हुए विश्वास को जगाया,
तुमने आशा से प्रकाशित किया।
दूर कर मेरे हृदय की निराशा को,
तुमने मुझे नवीन संबल भी दिया।
देकर तुमने मुझे अपना साहाय्य,
बताया,अभी नहीं तुम्हें थकना है।
आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,
अब उन्हें मुझे पूरा करना है।
माना बहुत दूर है किनारा मेरा,
पर उस तक मुझे पहुँचना है।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]
Comment
आदरणीय सौरभ जी,आपकी शुभकामनाएँ मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार !
हृदेश जी,आपके स्नेहिल शब्दों हेतु आभार !
आदरणीय कुंती जी,आपके इन प्रिय शब्दों हेतु हृदय से बहुत आभारी हूँ मैं और साथ ही कहना चाहूँगी कि आपने मेरा नहीं,मेरी बालसखी का नाम लिखकर मुझे उसकी भी याद दिला दी,इसके लिए आपका धन्यवाद !
आदरणीय गिरिराज जी, आपका आभार!
हार्दिक बधाई इस रचना के लिए
आपको एक अरसे के बाद पुनः पढ़ रहा हूँ.
शुभेच्छाएँ
सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सावित्री जी।
आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,
अब उन्हें मुझे पूरा करना है।
माना बहुत दूर है किनारा मेरा,
पर उस तक मुझे पहुँचना है। .....बहुत सुंदर...सविता जी जब भी आप आती है एक आशा लेकर...बहुत बहुत बधाई.
आदरणीय सावित्री जी , सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाई ॥
आदरणीय अन्नपूर्णा जी, उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार !
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