आह लिखो , हुंकार लिखो , कुर्बानी लिखना
बंद करो किस्सों में राजा रानी लिखना
सूखे खेतों की किस्मत में पानी लिखना
अब लिखना तो पीलेपन को धानी लिखना
और भी हैं रिश्ते यारों तुम छोडो भी अब
महबूबा के दर अपनी पेशानी लिखना
मानवता उन्वान , भरा हो प्रेम कहन में
अपना जीवन ऐसी एक कहानी लिखना
जब भी तुम अपने लब पर मुस्कान लिखो तब
मेरे माथे पर भी कुछ ताबानी लिखना
जो कर दें दरबारी धार कलम की , ऐसे -
शाही फरमानों पर नाफरमानी लिखना
.
.
................................................. अरुन श्री !
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Saurabh Pandey सर , आपकी नज़र तो पड़ी और उससे अच्छा ये कि आपको पसंद भी आ गई गज़ल ! :-)))))) बहुत बहुत धन्यवाद आपको !
हर शेर पर अलग-अलग दाद.. और फिर पूरी ग़ज़ल पर बधाई..
बहुत दिनों पर आप से सुना है कुछ जोकि ग़ज़ल है. और आपने दिल के हुबाबों को हल्के हर्फ़ नहीं दिये हैं.
बहुत खूब !
आदरणीय अरुण जी,
कमाल की गजल, हर एक शेर लाजवाब बहुत बहुत बधाई
Dr.Prachi Singh मैम , गज़ल को इतना मान देने के लिए बहुत धन्यवाद आपको !
CHANDRA SHEKHAR PANDEY भाई , कुछ तो आप कि संगत का भी असर है कि शे'र सवासेर हो सके ! सराहने के लिए धन्यवाद ! :-))
Sushil Sarna सर , बहुत दिनों बाद आपसे रूबरू होना सुखद है ! बहुत धन्यवाद ! :-))
आ० अरुण जी
हर शेर में उन्नत सोच अंगार की तरह दहक रही है...
लाजवाब ग़ज़ल हुई है
बहुत बहुत बधाई
भाई अरुण श्री जी कमाल का लेखन है . आग उगलती इस गजल और अपने योद्धा वाली अभिवृत्ति के लिए हार्दिक बधाई ले. किस किस शेर को कहे सब सवाशेर हैं. जय हो.
वाआआआआअह अरुण जी वाह .... शानदार ग़ज़ल का हर शेर शानदार और दमदार …गहन भावों की अभिव्यक्ति वाली इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
vandana tiwari मैम , बहुत शुक्रिया पसंदगी के लिए !
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