221 2122 221 2122
शब्दों में पत्थरों को भर मारने की आदत
यूँ बेवजह तुम्हे ठोकर मारने की आदत
हमने मुहब्बतों में झेले सितम हज़ारों
दीवार पे हमें है सर मारने की आदत
ईमानो हक की बातें हैं करते आज वे ही
जिनको है भीड़ में छुप कर मारने की आदत
हालात दर्द को पैहम यूँ बढ़ाये उसपे
ऐ हुक्मराँ तेरी नश्तर मारने की आदत
उड़ना जिन्हे है वो उड़ ही जाते हैं परिन्दे
उनको नही ज़मीं पे पर मारने की आदत
(मौलिक तथा अप्रकाशित)
Comment
खुबसूरत गजल
बेहतरीन गज़ल
सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई ..... |
आदरणीय शिज्जू भाई , सुन्दर गज़ल के लिए बधाई .
बातें हुक़ूक़ो ईमाँ की करते हैं वही अब
जिनको है भीड़ में छुपकर मारने की आदत.
क्या खूब कहा !
आदरणीय शिज्जू भाई , बहुत सुन्दर गज़ल हुई है , आपको बधाइयाँ ॥ मतला बहुत खूब सूरत है ॥
हर बात पे है क्यूँ पत्थर मारने की आदत
यूँ बेवजह तुम्हे ठोकर मारने की आदत -------------- लाजवाब , ढेरों बधाइयाँ ॥
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online