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वक्त की आंधी में ....

वक्त की आंधी में ....

कुछ तुमने बढ़ा ली दूरियां
कुछ हम मज़बूर हो गए
अपने अपने दायरों में
इक दूजे से दूर हो गये
चंद लम्हों की मुलाक़ात में
जन्मों के वादे कर लिए
चंद कदम चल भी न पाये
और रास्ते कहीं खो गये
वक्त की आंधी में सारे
स्वप्न गर्द में खो गये
कर न पाये शिकवा कोई
हम दो किनारे हो गये

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 730

Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 5, 2014 at 1:34pm

आदरणीय बैदयनाथ सारथी  जी रचना पर  स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार  … नेट प्रॉब्लम होने के कारण आभार व्यक्त न कर सका  .... क्षमा चाहता हूँ 

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2014 at 1:33pm

आदरणीय अनुपम बाजपयी जी रचना पर  स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार  … नेट प्रॉब्लम होने के कारण आभार व्यक्त न कर सका  .... क्षमा चाहता हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 31, 2014 at 8:26pm

आज के युवाओं के उत्साही प्रेम के हश्र की यथा अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई प्रस्तुति पर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 31, 2014 at 10:22am

वक्त की आंधी में सारे
स्वप्न गर्द में खो गये
कर न पाये शिकवा कोई
हम दो किनारे हो गये

बहुत सुंदर रचना, बधाई आदरणीय शुशील जी

Comment by बृजेश नीरज on January 30, 2014 at 8:15pm

बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by pawan amba on January 30, 2014 at 1:21pm

अपने अपने दायरों में 
इक दूजे से दूर हो गये 

सुंदर

Comment by Anita Maurya on January 29, 2014 at 5:06pm

वाह !! बहुत सुन्दर..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 29, 2014 at 4:59pm

वाकई गजब है जिन्दगी की दास्ताँ अमूनन ऐसा ही होता है ..आदरणीय शुशील जी आपको हार्दिक बधाई के साथ ..सादर 

Comment by coontee mukerji on January 29, 2014 at 4:30pm

सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 29, 2014 at 2:29pm

आदरणीय सुशील भाई , सुन्दर ॥   असफल प्रेम की मज़बूरिया बताती  आपकी रचना  के लिये के लिये आपको बधाई ॥

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