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गज़ल... बागों बुलाती है सुबह (कल्पना रामानी)

रात पर जय प्राप्त कर जब जगमगाती है सुबह।

किस तरह हारा अँधेरा, कह सुनाती है सुबह।

 

त्याग बिस्तर, नित्य तत्पर, एक नव ऊर्जा लिए,

लुत्फ लेने भोर का, बागों बुलाती है सुबह।   

 

कालिमा को काटकर, आह्वान करती सूर्य का,

बाद बढ़कर, कर्म-पथ पर, दिन बिताती है सुबह।

 

बन कभी तितली, कभी चिड़िया, चमन में डोलती,

लॉन हरियल पर विचरती, गुनगुनाती है सुबह।

 

फूल कलियाँ मुग्ध-मन, रहते सजग सत्कार को,

क्यारियों फुलवारियों को, खूब भाती है सुबह।

 

इस मधुर वेला में हम भी, क्यों न उठकर चल पड़ें,

मन उतारें रंग जो, हर दिन दिखाती है सुबह।

मौलिक व अप्रकाशित  

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Comment by कल्पना रामानी on February 5, 2014 at 10:27pm

सुंदर टिप्पणी द्वारा मनोबल बढ़ाने के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी


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Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2014 at 4:43am

शरद की चकित भोर, मुलायम हरियाई घास पर बिखरी ओस और उस पर चुपचाप दूर तक चलना याद आ गया... शुभ-शुभ

Comment by कल्पना रामानी on February 2, 2014 at 9:31pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, आ॰ जितेंद्र जी, आ॰ मनोज जी, गजल की सराहना के लिए आप सबका हार्दिक धन्यवाद

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on February 2, 2014 at 6:44pm

कालिमा को काटकर, आह्वान करती सूर्य का,

बाद बढ़कर, कर्म-पथ पर, दिन बिताती है सुबह।.....बहुत ही बेहतरीन...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 2, 2014 at 8:50am

बेहद सुंदर ताजगी भरी गजल, हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:24am

आदरणीय कल्पना जी , सुन्दर हिन्दी ग़ज़ल के लिये बधाइ.

Comment by कल्पना रामानी on February 1, 2014 at 10:42pm

आदरणीय आशुतोष जी, आपके प्रशंसात्मक शब्दों से मन और ऊर्जावान हो उठा है। आपका हृदय से आभार। सादर

Comment by कल्पना रामानी on February 1, 2014 at 10:41pm

आ॰ वंदना जी, प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 1, 2014 at 9:12pm

आदरणीया कल्पना जी ..हिंदी के चुने हुए बेहतरीन शब्दों से सुसज्जित ग़ज़ल ओपन बुक्स ओं लाइन के बृहत् आकाश पर मनभावन सहर की तरह है ..भोर के परिदृश्य का बेहतरीन चित्रण करती इस रचना के लिए तहे दिल बधाई //सादर

Comment by vandana on February 1, 2014 at 9:06pm

रात पर जय प्राप्त कर जब जाग जाती है सुबह।

किस तरह हारा अँधेरा, कह सुनाती है सुबह।

बहुत खुशनुमा सुबह आदरणीया कल्पना मैम

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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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