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नीड़ का निर्माण फिर फिर टल रहा है (गजल) - कल्पना रामानी

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बल भी उसके सामने निर्बल रहा है।

घोर आँधी में जो दीपक जल रहा है।

 

डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,

नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है।

 

हाथ फैलाकर खड़ा दानी कुआँ वो,

शेष बूँदें अब न जिसमें जल रहा है।

 

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।

 

क्यों तुला मानव उसी को नष्ट करने,

जो हरा भू का सदा आँचल रहा है।

 

मन को जिसने आज तक शीतल रखा था,

सब्र का घन धीरे-धीरे गल रहा है।

 

ख्वाब है जनतन्त्र का अब तक अधूरा,

आदि से जो इन दृगों में पल रहा है।

मौलिक व अप्रकाशित   

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Comment

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Comment by कल्पना रामानी on February 6, 2014 at 10:30pm

आदरणीय सौरभ जी, आपकी टिप्पणी से एक नई ऊर्जा तो मिलती ही है, और मन बेहतर लेखन के लिए भी प्रेरित होता है। आपका हृदय से आभार।  

Comment by कल्पना रामानी on February 6, 2014 at 10:28pm

आदरणिनीय रमेश जी, हार्दिक आभार आपका

Comment by कल्पना रामानी on February 6, 2014 at 10:27pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 5:04pm

आपकी कई ग़ज़लें पहले भी चकित करती रही हैं, आदरणीया कल्पनाजी. इस ग़ज़ल से भी मन प्रसन्न है.

यह अवश्य है, आदरणीया,  जो अच्छा कहता-लिखता है उसीसे बेहतर और अच्छे की अपेक्षा भी होती है

सादर शुभकामनाएँ.

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 6, 2014 at 10:52am

बेहतरीन गजल कही है आदरणीया आपने मन गदगद हो गया । बहुत बहुत बधाई

Comment by annapurna bajpai on February 6, 2014 at 1:49am

आ0 कल्पना दी बहुत सुंदर गजल हुई है बधाई आपको । 

Comment by कल्पना रामानी on February 5, 2014 at 10:23pm

आदरणीय नीरज जी, गजल की प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद।

डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,//इसका भावार्थ  यह है कि सुरक्षित  डाल ढूंढते-ढूंढते  पखेरू हार चुका  है जो नीड़  बनाना चाहता है। 

Comment by कल्पना रामानी on February 5, 2014 at 10:18pm

आदरणीय मित्रों अनिल जी, केवल प्रसाद जी, जितेंद्र जी, गिरिराज जी,आदरणीया राजेश कुमारी जी, मोहिनी जी, कुंती जी, मीना जी, सरिता जी, आप सबकी अपनत्व से भरी प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार। सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2014 at 8:58pm

वाह वाह वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आ.कल्पना जी दिली दाद स्वीकारें 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 5, 2014 at 8:42pm

लाजवाब गजल...वाह! बहुत खूब! हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,

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