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वो तन को ढांकते हैं रोशनी से , ( गज़ल ) गिरिराज भन्डारी

1222  1222  122

 

वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से

बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से

बनावट से ज़रा सा दूर रहना  

मै कहना चाहता हूँ , सादगी से

नज़र में मुस्कुराहट, होठ चुप हैं

न जाने कह रहे हैं क्या, हँसी से

मै अब बेरोक बहता हूँ, हवा हो

ये रिश्ता खूब है आवारगी से

वो जुगनूँ जल के, शायद कह रहा है

नहीं डरता, किसी भी तीरगी से

वो जिनकी फ़िक्र मे आज़ार है कुछ

वही डरते रहे बे पर्दगी से

चलो हम गुनगुनायें आज, ग़म को

ज़रा रिश्ता तो जोड़ें आशिकी से

ये दुनिया खूबसूरत भी लगेगी

तू आजिज़ आ कभी जो आजिज़ी से

बहुत ज़ाहिर किया, फिर भी बचा है

कोई कितना कहेगा शाइरी से ?

**************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 12:33pm

आदरणीया सरिता जी , सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 12:32pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 12:31pm

आदरणीय शिज्जू भाई , ग़ज़ल की तारीफ कर उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 12:29pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 12:29pm

आदरणीय वीनस भाई , आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से हार्दिक संतोष हुआ ॥ तारीफ के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 12:27pm

आदरणीय बैद्यनाथ भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 12:25pm

आदरणीया वन्दना जी , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by Sarita Bhatia on February 2, 2014 at 11:18am

लाजवाब गजल आदरणीय गिरिराज जी बधाई प्रेषित है 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 2, 2014 at 10:05am

बहुत खुबसूरत गजल आदरणीय गिरिराज जी, एक से बढ़कर एक शेर हुए, यह शेर खास हुआ

बनावट से ज़रा सा दूर रहना  

मै कहना चाहता हूँ , सादगी से...........दिली दाद कुबूल कीजियेगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 2, 2014 at 8:37am

आदरणीय गिरिराज सर बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है सारे अशआर पसंद आये बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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