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जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

 

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

कुहरा आया छाए बादल

टिप - टिप बरसा पानी ।

जाने कब मौसम बदलेगा

हार  धूप  ने   मानी ।

गौरइया भी दुबकी सोचे , जाने क्यूँ सकुचाई धूप !

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

बिजली चमकी , गरजा बादल

हवा   चली     पछुवाई ।

थर – थर काँपे तनवा मोरा

याद  तुम्हारी   आयी ।

घने बादलों मे घिर – घिर कर, लेती अब अंगड़ाई धूप !

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने  क्यूँ  अलसायी धूप ?

बढ़ी ठंड पिछले पखवारे

नहीं  दिखी  परछाईं ।

मेरे आँगन की तुलसी भी

खड़ी – खड़ी मुरझायी ।

इन्तजार मे दिन भी बीता , बादल मे शरमायी धूप !

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

                  ------ मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by S. C. Brahmachari on February 9, 2014 at 10:05pm
रचना की प्रशंसा मनभावन लगी । हार्दिक आभार बहन डॉ प्राची जी !
Comment by S. C. Brahmachari on February 9, 2014 at 9:55pm
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार भाई सौरभ पाण्डेय जी !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 7, 2014 at 11:08am

वाह ! बहुत खूबसूरत गीत लिखा है..

उमड़ते घुमड़ते बादलों के बीच ही जैसे पहुचा दिया कविता नें धूप ढूंढते...

प्रवाह भी बहुत ही सुन्दर है..

हार्दिक बधाई आ० ब्रह्मचारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 12:44am

आदरणीय ब्रह्मचारीजी.

वाह वाह ! .. बधाई !

Comment by S. C. Brahmachari on February 4, 2014 at 9:07pm
आप सभी को मेरी रचना पसंद आयी, हृदय से आभारी हूँ । वसंत पर्व की हार्दिक शुभ कामनाएँ स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 4, 2014 at 12:28am
बहुत सुंदर ब्रह्मचारी जी, आनंद आ गया.
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 3, 2014 at 10:43pm

बहुत सुंदर गीत, हार्दिक बधाई आदरणीय ब्रह्मचारी जी

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 3, 2014 at 9:27pm

बहुत ही सुंदर आदरणीय बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on February 3, 2014 at 7:29pm

वाह! बहुत सुन्दर! बढ़िया गीत! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Meena Pathak on February 3, 2014 at 2:28pm

बहुत सुन्दर गीत .. सादर बधाई आप को 

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