नियति
किसी वी आई पी के
निधन पर -
लोक सभा एवं विधान सभा ने
शोक प्रकट किया है।
शोक अक्सर प्रकट किया जाता है
कोई वी आई पी जब दिवंगत होता है।
तुम क्यूँ रोते हो ?
शायद तुम्हारे घर मे, पड़ोस मे, मुहल्ले मे –
तुम्हारा कोई अज़ीज़ दिवंगत हो गया है।
कलुआ कह रहा था
साहब, नथुवा ने
तीन दिन से खाना नहीं खाया था
बीमार था, ठंड से ठिठुर कर - दम तोड़ दिया बेचारे ने ।
उसकी घरवाली ने लाला से –
अपनी पगार मांगी थी, पर –
लाला ने दुत्कार कर भगा दिया ।
बेचारी ने भगवान से
विनती की थी
हे भगवान !
मेरे `नथु` को बचा ले ,
कष्ट से उबार दे उसे ,
मुझे उठा ले ।
किन्तु कष्ट तो नथुवा को था
भगवान ने उसका कष्ट -
हमेशा हमेशा के लिए दूर कर दिया ।
इस मुहल्ले मे नथुवा
अकेला नहीं है
कई हैं –
भूखे हैं , नंगे हैं , बीमार हैं ।
कल फिर कोई नथुवा मरेगा, पर –
उसके मरने पर
शोक प्रकट कौन करेगा ?
लोक सभा, विधान सभा
मुहल्ला, समाज, हम या तुम ?
शायद कोई भी नहीं, क्यूँ कि –
वह वी आई पी नहीं है ।
उसके मरने पर, सिर्फ कलुवा –
शोक नहीं, अफसोस प्रकट करेगा ।
लोक सभा या विधान सभा को
पता तक नहीं चलेगा , कि - उसके
देश, प्रदेश के किसी `नथुवा` ने ठंड मे भूख से तड़प तड़प कर
अपना दम तोड़ दिया है ।
------ मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय ब्रह्मचारीजी, आपको इस मंच पर एक समय से पढ रहा हूँ. आपकी कविताओं के माध्यम से आपकी संवेदना और भावुकता का खूब भान होता है. संवेदनशीलता उभर आती है. हाँ यह अवश्य है कि इसे कविता बनने में तनिक समय लगेगा. प्रस्तुतियों की पंक्तियों में वस्तुतः कवितायी ही होती है, जो लेखन में कविता के होने का उद्घोष करती है. उसके लिए ही सारी कवायद करनी होती है. इसे ही हम रचनाकर्म कहते हैं. कवितायी के पूर्व प्रस्तुतियों में संभावनायें ही होती हैं जो किसी आमजन को कवि होने का मौका देती हैं.
आपकी संलग्नता उत्साहवर्द्धक है. आपमें लिखने और सुनाने के प्रति उत्साह है जिसका मैं भी सम्मान करता हूँ. लेकिन सार्थकता के लिए सतत अभ्यास चाहिये जिसके प्रति आपसे आश्वस्ति है.
सादर
आदरणीय ब्रह्मचारी जी
बहुत संवेदनशीलता से एक गरीब भूखे असहाय की मृत्यु पर समाज की संवेदनहीनता को अभिव्यक्त किया है...जैसे पूरा चित्र आँखों के आगे उकेर कर रख दिया गया हो. इस संवेदनशीलता के लिए हार्दिक बधाई
अब कुछ शिल्प पर.. आदरणीय इस तरह की अभिव्यक्तियों में प्रवाह को कुछ इस प्रकार साधना होता है की प्रस्तुति गद्यात्मक न रहे.. जिस पर थोडा प्रयास अपेक्षित हैं.. वैसे सतत लेखन अभ्यास से और अन्य प्रतुतियों को समीक्षात्मक नज़रिए से पढने से ये तत्व स्वतः ही लेखन में समाहित होने लगता है.
आपकी संवेदनशील मर्मस्पर्शी वैचारिक अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई आदरणीय.
बहुत ही मार्मिक चित्रण है भाई साहब...
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति आदरणीय कटु सत्य को आपने शब्दों के माध्यम से दर्शाया है बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर.
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