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(1)
झेला   हमने   इसलिए,  हर  काँटे   का  दंश । 
ताकि चमन में खिल सकें, फूलों के सब वंश ॥ 
फूलों  के   सब   वंश,  महक   वे   सारे  पाएँ । 
गुलशन का हर द्वार, प्यार से जो  खटकाएँ ॥ 
कहें  'शून्य' कविराय, लगे खुशियों का मेला । 
पाएँ  सब  आनंद,  कष्ट  इस  कारण  झेला ॥ 
 
(2)
सपनों  में  यह  गगन भी, तभी बजाए शंख । 
दीप  जला  हो  आस का, हों  साहस के पंख ॥
हों  साहस के पंख, न  डर  हो  कड़ी  धूप का । 
जानो सबका मोल, मिले जल सिंधु/कूप का ॥ 
गैरों  से  कर  प्रेम, न   दूरी   रख  अपनों  में । 
हो जमीन का ध्यान, उड़ो जब भी सपनों में ॥  
 
- शून्य आकांक्षी 
अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on February 3, 2014 at 12:00pm

आपको कुण्डलियाँ पसंद आयीं । बहुत अच्छा लगा । रचनाएँ पसंद करने और सुन्दर टिप्पणी करने के लिए आपका धन्यवाद  ram shiromani pathak  जी । 

- शून्य आकांक्षी 

Comment by Shyam Narain Verma on February 3, 2014 at 11:46am
लाजवाब कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई
Comment by ram shiromani pathak on February 3, 2014 at 10:17am

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर कुंडलियां। ……।  हार्दिक बधाई आपको

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