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बल भी उसके सामने निर्बल रहा है।
घोर आँधी में जो दीपक जल रहा है।
डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,
नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है।
हाथ फैलाकर खड़ा दानी कुआँ वो,
शेष बूँदें अब न जिसमें जल रहा है।
सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,
दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।
क्यों तुला मानव उसी को नष्ट करने,
जो हरा भू का सदा आँचल रहा है।
मन को जिसने आज तक शीतल रखा था,
सब्र का घन धीरे-धीरे गल रहा है।
ख्वाब है जनतन्त्र का अब तक अधूरा,
आदि से जो इन दृगों में पल रहा है।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
ख्वाब है जनतन्त्र का अब तक अधूरा,
आदि से जो इन दृगों में पल रहा है। नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है। पूरी रचना ही सोचने को मजबूर करती है | बहुत से सवालों के जवाब चाहियें लेकिन ...कौन दे जवाब ?हम सभी को अपने-अपने गिरेबान में झाँकने की आज जरूरत है |एक पक्षी पुरषार्थ के बाल पर नीड़ का निर्माण कर ही लेगा हम अपने जनतंत्र को पाने का सच्चा पुरषार्थ कब करेंगे ? कल्पना जी ! बहुत अच्छी रचना .
सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,
दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।.......................बहुत खूब..............अच्छा है..............
सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,
दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।..........यह शेर बहुत पसंद आया
हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना जी
आदरणीया कल्पना जी , बहुत बढिया ग़ज़ल कही है ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
बल भी उसके सामने निर्बल रहा है।
घोर आँधी में जो दीपक जल रहा है।
डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,
नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है। ----------- ये शे र खूब पसन्द आये , बधाई प्रेषित है ॥
सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,
दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।
क्यों तुला मानव उसी को नष्ट करने,
जो हरा भू का सदा आँचल रहा है।....लाजवाब. कल्पना जी हार्दिक बधाई.
बहुत सुन्दर .. बधाई आ० कल्पना दी | सादर
वाह दी लाजवाब गजल
सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,
दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।
हार्दिक बधाई
सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,
दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।
सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,
दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।...............................अच्छा लगा..........
बहुत अच्छी हकीकत सामने रखी आपने आदरणीया कल्पना जी ।
उस पर बच्चन जी के नज़रिये को भी आगे बढ़ाया है लेकिन
डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,
नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है।
इसमें थोड़ा सा अजीब लग रहा है
मतलब
डाल रक्षित ढूंढते , हारे पखेरू
या
डाल रक्षित ढूँढता ,हारा पखेरू
ऐसा कुछ होना चाहिए मेरे हिसाब से
पर हो सकता है आप सही हों ।
बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रेषित हैं ।
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