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(दो कुण्डलियाँ) छोटा परिवार,सुखी परिवार

ढांचा सुधरे देश का ,सुदृढ़ हो आकार

खुशियाँ बसती हैं जहां ,छोटा हो परिवार

छोटा हो परिवार ,प्रेम से आँगन महके

पुत्री हो या पुत्र ,नीड़ में खुशियाँ  चहके

बूढों का सम्मान ,भरे जीवन का सांचा

हो  जाए उत्थान , देश का सुधरे ढांचा

**************************

           (२)|

पहले दो टुकड़े हुए ,और हुए फिर चार

टूक-टूक रोटी बटे,बढ़े अगर परिवार

बढ़े अगर परिवार, लड़ाई गुत्थम गुत्थी

खिचे बीच दीवार, रोज की माथापच्ची

रिश्तों बीच खटास,आर्थिक धरती दहले

खुशियाँ लाओ पास,करो नसबंदी पहले  

********************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 7, 2014 at 10:08pm

बहुत- बहुत शुक्रिया आ० गिरिराज जी कुंडलियों के भाव ,सन्देश पूर्ण लगे.आर्थिक धरती दहले =अर्थात आर्थिक स्थिति का डगमगा जाना ,मुझे तो नहीं लग  रहा कि भाव स्पष्ट नहीं हैं फिर भी .... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2014 at 8:14pm

आदरणीया सुन्दर सदेश देती आपकी कुंडलियाँ के लिये आपको बधाई ॥आर्थिक धरती दहले ,  इतना हिस्सा पढने मे कुछ अटक रहा है ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 7, 2014 at 11:37am

आपका बहुत- बहुत हार्दिक आभार आ० श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by Shyam Narain Verma on February 7, 2014 at 10:55am
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति , बधाई आप को | सादर 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 6, 2014 at 6:38pm

आ० नादिर खान जी कुण्डलियाँ आपको पसंद आई ,हार्दिक आभार आपका.  

Comment by नादिर ख़ान on February 6, 2014 at 1:19pm

पुत्री हो या पुत्र ,नीड़ में खुशियाँ  चहके

बूढों का सम्मान ,भरे जीवन का सांचा

हो  जाए उत्थान , देश का सुधरे ढांचा

आदरणीय राजेश कुमारी जी, बहुत सुंदर बात कही आपने कुंडलियों के माध्यम से .......

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