क्या तुम्हें उपहार दूँ,
प्रिय प्रेम के प्रतिदान का.
तुम वसंत हो, अनुगामी
जिसका पर्णपात नहीं.
सुमन सुगंध सी संगिनी,
राग द्वेष की बात नहीं.
शब्द अपूर्ण वर्णन को
ईश्वर के वरदान का.
विकट ताप में अम्बुद री,
प्रशांत शीतल छांव सी,
तप्त मरू में दिख जाए,
हरियाली इक गाँव की.
कहो कैसे बखान करूँ
पूर्ण हुए अरमान का.
मैं पतंग तुम डोर प्रिय,
तुम बिन गगन अछूता है.
तुमसे बंधकर जीवन
व्योम उत्कर्ष छूता है.
तुम ही कथाकार हो, इस
जीवन के आख्यान का.
क्या तुम्हें उपहार दूँ,
प्रिय प्रेम के प्रतिदान का.
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
खेद है, भाईजी, अपनी व्यस्तता के कारण रचना पर समय से नहीं आ पाया. किन्तु यह किसी रचना की अपनी गरिमा ही हुआ करती है कि पाठक अधिक दिन उससे दूर नहीं रह सकते.
शुभ-शुभ
आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी , मैं कब से इस रचना पर आपका इंतज़ार कर रहा था .. आपका धन्यवाद .
बहुत सजग प्रयास हुआ है. सुझावों पर ध्यान दीजियेगा.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय जीतेंद्र गीत साहब आपका बहुत बहुत आभार.
मैं पतंग तुम डोर प्रिय,
तुम बिन गगन अछूता है.
तुमसे बंधकर जीवन
व्योम उत्कर्ष छूता है............बेहद खुबसूरत, प्रेम के रिश्ते को बहुत सुंदर शब्द मिले
बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी
आदरणीया शशि पुरवार जी आपका हार्दिक आभार ...
आ. महिमा श्री जी आपका बहुत बहुत आभार जी ..
आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा आपका ह्रदय तल से आभार और आपकी सलाह भी गाँठ बाँध ली .. सीख रहा हूँ , आप लोग स्नेह बनाये रखें एक दिन पक्का हो जाऊंगा :)
आ. शिज्जू शकूर साहब आपका हार्दिक धन्यवाद.
सुन्दर भावो से सजा हुआ कोमल गीत हार्दिक बधाई
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