मन – पाँच दोहे
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मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर
फिर से गुनगुन धूप में , नाचेगा मन मोर
मन, आखें मीचे अगर , खूब मचाये शोर
आँख अगर हो देखती , मन भटके चहुँ ओर
खाली मन चिंता करे , मन का बस ये काम
बांधो इसको काम से , कभी न दो आराम
मन का ले के साथ तू , मन से हो जा दूर
मन के बन्धन में रहा , वो लगता मज़बूर
जब तक मन का राज है, मन मनवाये बात
तू राजा जिस दिन हुआ , मन की क्या औकात
मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
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Comment
आदरणीया वन्दना जी , दोलावली की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय सौरभ भाई , आपको मेरा दोहों का प्रयास अच्छा लगा , लिखना सार्थक हुआ !! आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर
फिर से गुनगुन धूप में , नाचेगा मन मोर
मन का ले के साथ तू , मन से हो जा दूर
मन के बन्धन में रहा , वो लगता मज़बूर
जब तक मन का राज है, मानो उसकी बात
तू राजा जिस दिन हुआ , मन की क्या औकात
वाह आदरणीय बहुत सुन्दर दोहावली
प्रस्तुति पर विशद व्याख्या के बाद विशेष शेष नहीं.
आपको इस उन्नत प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ.
सादर
आदरणीया प्राची जी , दोहो पर विस्तार से प्रतिक्रिया देने और सराहाना के लिये आपका आभारी हूँ ॥ आपके निर्देशानुसार गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करूंगा ॥ आपका पुनः आभारी हूँ ॥
मन की सत्ता को समझते हुए बहुत सुन्दर कथ्य प्रस्तुत किया है दोहों में आदरणीय गिराज भंडारी जी
मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर
फिर से गुनगुन धूप में , मन नाचेगा मोर ...................'नाचेगा मन मोर' ऐसे किया जाए तो ?
मन, आखें मीचे अगर, खूब मचाये शोर
आँख अगर रखते खुली, तो देखे चहुँ ओर....................यह पंक्ति बहुत सपाट सी लगी , इसमें थोड़ी सी और कल्पना शीलता होती तो आनंद आ जाता
खाली मन चिंता करे , मन का बस ये काम
बांधो इसको काम से , कभी न दो आराम................सीधी सादी बात, पर सुन्दर (फिर भी 'कभी न दो आराम 'से मैं सहमत नहीं, मन की विश्रांति तो बहुत जीवन में बहुत ही ज़रूरी है )
मन का ले के साथ तू , मन से हो जा दूर
मन के बन्धन में रहा , वो लगता मज़बूर................वाह मन के पार जाने के लिए मन का ही सहारा...बहुत पसंद आया यह दोहा
जब तक मन का राज है, मानो उसकी बात
तू राजा जिस दिन हुआ , मन की क्या औकात...........यह भी बहुत सुन्दर , मन जब तक नचाता है हम नाचते हैं पर जिस दिन मन पर नियंत्रण करना आ गया वह ही विजय का दिन होता है . इस दोहे की पहली पंक्ति में 'मानो ' शब्द और दूसरी पंक्ति में 'तू' शब्द दोनों एक साथ वचन दोष उत्पन्न कर रहे हैं ..एक नज़र देखिये
इस सुन्दर दोहावली के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें
सादर.
आदरणीय अशुतोष भाई , दोहों की सराहना के लिये आपका बहुत आभार ॥
खाली मन चिंता करे , मन का बस ये काम
बांधो इसको काम से , कभी न दो आराम
जब तक मन का राज है, मानो उसकी बात
तू राजा जिस दिन हुआ , मन की क्या औकात ...आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..वाकई कमल के दोहे ..मन पे व्यापक चिंतन से ओतप्रोत ये दोहे ..इनमे गेयता है और जीवन के लिए सार्थक संदेश भी ..आपको तहे दिल बधाअयीए के साथ सादर
आदरणीय लक्ष्मण भाई , दोहों की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय भाई गिरिराज जी, सटीक संदेशप्रद दोहावली के लिये हार्दिक बधाई l
खाली मन चिंता करे , मन का बस ये काम
बांधो इसको काम से , कभी न दो आराम
बहुत खूब .
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