इक गुलदस्ते की तरह, सजा हमारा देश।
तरह-तरह के लोग हैं, तरह-तरह के वेश।।
जाति धर्म के फेर में, उलझ गया इंसान।
प्रेम शांति का मार्ग है, सत्य यही लो जान।।
तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।
बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।
मक्कारी औ झूठ से, जो ना आये बाज।
उसकी भाषा लो समझ, पहचानो आवाज।।
(मौलिक व अप्रकाशित)* संशोधित
Comment
आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपकी नवाज़िशों के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ
आदरणीय शिज्जू जी पहली बार आपके दोहों को पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ .
तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।
बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।
.अपने देश की बकालत करता , भारतीय समाज की बिशिस्तता को दर्शाता , जन सामन्य को आगाह करते शानदार दोहों के लिए तहे दिल बधाई ..सादर
आदरणीय गिरिराज सर आपका हार्दिक आभार
आदरणीय शिज्जू भाई , सुन्दर दोहों के लिये बहुत बधाइयाँ ॥
अच्छे दोहे हैं रचे , खूब कही है बात
सुधरेंगे अब देश के , लगते हैं हालात
मेरी रचना को मान देने एवं हौसला अफ़्ज़ाई के लिये आप सभी का शुक्रिया अदा करता हूँ
आदरणीय शिज्जू जी, सभी बहुत सुंदर दोहे हैं . यह दोहा बेहद पसंद आया हार्दिक बधाई स्वीकारें
मजहब के आधार पे, निर्मित पाकिस्तान।
रहता होगा क्या वहाँ, कोई भी इंसान।।
तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।
बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।
बहुत सुंदर दोहे आदरणीय शिज्जू जी, यह दोहा बेहद पसंद आया हार्दिक बधाई स्वीकारें
तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।
बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।
बहुत सुंदर दोहे , बधाई ।
आ. शिज्जु भाई सुंदर दोहे, दोहे में पकड़ बढ़्ती जा रही है , भाव भी अच्छे हैं , हार्दिक बधाई॥
बहुत ही सुंदर दोहे ... काश ये सच हो पाता..
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