दोहे लिखने की मेरी पहली कोशिश है
घूम - घूम के देश मे, बाँट रहा है ज्ञान।
बातें कड़वी बोलता, सत्य उसे ना मान।।
अपना सीना तान के, करे शब्द से वार।
अन्धे उसके भक्त हैं, करते जय जयकार।।
बाँटे अपने देश को, लेके प्रभु का नाम।
उसको आता है यही, अधर्म का ही काम।।
यही देश का भाग है, यही देश का सत्य।
कोई आगे आय ना, नाग करे सो नृत्य।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
संशोधन के पश्चात पुनः दोहे प्रस्तुत कर रहा हूँ फिर से गौर फरमाइयेगा
Comment
आदरणीया महिमा बहन आपका बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत अच्छा प्रयास है आदरणीय शिज्जू जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें .
आप सभी का बहुत बहुत आभार
आदरणीया राजेश दीदी आदरणीय गिरिराज सर आदरणीय सौरभ सर सर्वप्रथम मैं आप सभी से माफी चाहता हूँ कि व्यस्तता के चलते टिप्पणी देख नही सका। आदरणीय राजेश दीदी एवं आदरणीया डॉ प्राची बहन मैं अपने कैजुअल अप्रोच के लिये आपसे माफी चाहता हूँ दरअस्ल इस दोहावली मैंने नरेन्द्र मोदी जी को केन्द्र में रखकर लिखा था लेकिन कुछ कारणों से ये छुपा गया. आदरणीया राजेश दीदी की टिप्पणी पढ़ने के बाद मुझे आभास हुआ कि मैंने क्या गलती की है और आदरणीय सौरभ सर आपसे भी माफी चाहता हूँ और उम्मीद करूँगा की आगे भी आप सभी का मार्गदर्शन मिलता रहेगा, जो कुछ भी मैंने कहा मेरी गलती है कि बिना सोचे कहा है आमतौर पर मैं बोल नही पाता जब बोलने का मौका मिलता है तो अतिउत्साह में ज़्यादा बोल जाता हूँ।
रचना के शिल्प पर आप सभी का अनुमोदन पाकर बहुत अच्छा लग रहा है आगे शिल्पगत त्रुटि के साथ कहन में त्रुटि न हो इसका ध्यान रखूँगा
यही होता है. जब नयी विधा सीखने के क्रम में रचनाकार प्रयासरत हो, लेकिन अर्जित अनुभवजन्य या वैयक्तिक वाद सिर पर भारी/हावी हो, तो सुधी और सचेत पाठक शिल्प पर बातें करते हुए भी असहज हो जाते हैं. और नुकसान फिर प्रयासकर्ता का ही होता है. या फिर सारा प्रयास समयकाटू या चलताऊ श्रेणी का ही हो, तो आगे कुछ कहना किसी मायने का ही नहीं रह जाता.
वैसे भाई शिज्जूजी आपने शिल्प के लिहाज़ से एक सार्थक कोशिश की है, यह भी दृष्टिगत है.
खूब-खूब बधाई.
आदरणीय शिज्जू भाई , बधाई हो , बढिया है सभी दोहे ॥ बारीकियाँ तो मै भी नही जानता पर ,दोहो के विशेष लय से पढने पर --- --उनको आता है यही अधर्म का ही काम, के स्थान मे अगर ,
उनको आता है यही , बस अधर्म का काम - कर दिया जाये तो गेयता कुछ अच्छी लग रही है , आपभी पढ के देख लीजियेगा , सही लगे तो परिवर्तन किया जा सकता है ॥ सादर ॥
आपको दोहों पर प्रयास करते देख बहुत ही अच्छा लग रहा है देर से देखे ,आज ही देहली से वापस आई हूँ प्राची जी ने कह दिया उसे दोहराना नहीं चाहती पर आपने तो अपने प्रतिउत्तर से ये मामला और उलझा दिया है ,बात तूल पकड़ सकती है आपका ईशारा भी आप ही समझ सकते हैं पाठक नहीं इसलिए पाठक जरूर पूछेंगे जो प्राची जी ने पूछा है ..... खैर मैं तो यही कहूँगी शिज्जू भाई ने बेहतरीन प्रयास किया है दोहों पर ...इसी तरह लिखते रहिये ,शुभकामनायें
आदरणीय डॉ प्राची जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी रचना पर अपने बहुमूल्य सुझाव दिये।
//यहाँ ये कड़वी बातें या ज्ञान की बातें कौन बोल रहा है, यह अस्पष्ट है//
जी यहाँ मैंने किसी व्यक्ति को केन्द्र में रख के व्यंग्य किया है। यहाँ ज्ञान बाँटने से मतलब डींगे हाँकने से है। मैंने जानबूझ कर किसी का नाम नही लिया। कुछ व्यक्ति हैं जिनके विचार मुझे व्यथित करते हैं और खुलेआम मैं विरोध भी नही कर सकता। यूँ समझ लीजिये यहाँ, मैंने अपना गुस्सा उतारना चाहा है।
आदरणीय शिज्जू जी
आपको दोहावली पर इतना सुन्दर प्रयास करता देख बहुत प्रसन्नता हो रही है..
विधाजन्य शिल्प की बात करूँ तो चारों दोहे एकदम शिल्प के अनुरूप हुए हैं...
आपके दोहों पर आने से पहले ये कहना चाहती हूँ..की दोहा छंद एक मुक्तक है... यानि एक दोहा अपने आप में किसी सार्थक कथ्य को पूर्णता से समाहित करता है.. ऐसा नहीं होता कि पहले दोहे के अर्थ का कुछ अंश दुसरे दोहे से समझ आये..या पूरी दोहावली पढ़ कर समझ में आये..
घूम - घूम के देश मे, बाँट रहा है ज्ञान।
बातें कड़वी बोलता, सत्य उसे ना मान।।..............यहाँ ये कड़वी बातें या ज्ञान की बातें कौन बोल रहा है, यह अस्पष्ट है. शिल्प पर पूरी तरह निर्दोष है ये दोहा.
अपना सीना तान के, करे शब्द से वार।
अन्धे उसके भक्त हैं, करते जय जयकार।।....यहाँ भी पहले दोहे वाली बात ही कहूंगी :))
बाँटे अपने देश को, लेके प्रभु का नाम।
उसको आता है यही, अधर्म का ही काम।।..............यहाँ भी वही बात है. साथ ही अधर्म शब्द का आतंरिक विन्यास १२१ होने के कारण सम चरण में गेयता भी अवरुद्ध है... यही और ही एक ही पद में ज़बरदस्ती के लग रहे हैं.
यही देश का भाग है, यही देश का सत्य।
कोई आगे आय ना, नाग करे सो नृत्य।।........विषम चरण में 'आय न' यह आंचलिक अंश यहाँ उचित नहीं लग रहा..'न बढ़े' ये कर सकते हैं.. सत्य और नृत्य की तुकांतता भी मुझे लगता है बहुत सही नहीं है.
अपनी समझ भर कुछ सुझाने का प्रयास किया है..शायद सार्थक लगे
लेकिन प्रथम प्रयास की दृष्टी से बहुत ही सुन्दर और सफल प्रयास है..जिसके लिए आपको हृदयतल से बहुत बहुत बधाई.
आप सभी ने मेरी दोहावली के प्रथम प्रयास पे गलतियों को नज़रअंदाज़ कर हिम्मत बढ़ाई है इसके लिये आभार कोशिश करूँगा कि अगली बार आप सभी की उम्मीदों पे खरा उतरुँ
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