For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहे लिखने की मेरी पहली कोशिश है

घूम - घूम के देश मे, बाँट रहा है ज्ञान।

बातें कड़वी बोलता, सत्य उसे ना मान।।

 

अपना सीना तान के, करे शब्द से वार।

अन्धे उसके भक्त हैं, करते जय जयकार।।

 

बाँटे अपने देश को, लेके प्रभु का नाम।

उसको आता है यही, अधर्म का ही काम।।

 

यही देश का भाग है, यही देश का सत्य।

कोई आगे आय ना, नाग करे सो नृत्य।।

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

संशोधन के पश्चात पुनः दोहे प्रस्तुत कर रहा हूँ फिर से गौर फरमाइयेगा

Views: 590

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 20, 2014 at 9:25am

आदरणीया महिमा बहन आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by MAHIMA SHREE on February 11, 2014 at 9:13pm

बहुत अच्छा प्रयास है  आदरणीय शिज्जू जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 7, 2014 at 4:54pm

आप सभी का बहुत बहुत आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 7, 2014 at 4:53pm

आदरणीया राजेश दीदी आदरणीय गिरिराज सर आदरणीय सौरभ सर सर्वप्रथम मैं आप सभी से माफी चाहता हूँ कि व्यस्तता के चलते टिप्पणी देख नही सका। आदरणीय राजेश दीदी एवं आदरणीया डॉ प्राची बहन मैं अपने कैजुअल अप्रोच के लिये आपसे माफी चाहता हूँ दरअस्ल इस दोहावली मैंने नरेन्द्र मोदी जी को केन्द्र में रखकर लिखा था लेकिन कुछ कारणों से ये छुपा गया. आदरणीया राजेश दीदी की टिप्पणी पढ़ने के बाद मुझे आभास हुआ कि मैंने क्या गलती की है और आदरणीय सौरभ सर आपसे भी माफी चाहता हूँ और उम्मीद करूँगा की आगे भी आप सभी का मार्गदर्शन मिलता रहेगा, जो कुछ भी मैंने कहा मेरी गलती है कि बिना सोचे कहा है आमतौर पर मैं बोल नही पाता जब बोलने का मौका मिलता है तो अतिउत्साह में ज़्यादा बोल जाता हूँ।
रचना के शिल्प पर आप सभी का अनुमोदन पाकर बहुत अच्छा लग रहा है आगे शिल्पगत त्रुटि के साथ कहन में त्रुटि न हो इसका ध्यान रखूँगा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 1:19am

यही होता है. जब नयी विधा सीखने के क्रम में रचनाकार प्रयासरत हो, लेकिन अर्जित अनुभवजन्य या वैयक्तिक वाद सिर पर भारी/हावी हो, तो सुधी और सचेत पाठक शिल्प पर बातें करते हुए भी असहज हो जाते हैं. और नुकसान फिर प्रयासकर्ता का ही होता है. या फिर सारा प्रयास समयकाटू या चलताऊ श्रेणी का ही हो, तो आगे कुछ कहना किसी मायने का ही नहीं रह जाता.

वैसे भाई शिज्जूजी आपने शिल्प के लिहाज़ से एक सार्थक कोशिश की है, यह भी दृष्टिगत है.

खूब-खूब बधाई. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 5, 2014 at 7:24pm

आदरणीय शिज्जू भाई , बधाई हो , बढिया है सभी दोहे ॥ बारीकियाँ तो मै भी नही जानता पर ,दोहो के विशेष लय से पढने पर --- --उनको आता है यही अधर्म का ही काम,  के स्थान मे अगर , 

उनको आता है यही , बस अधर्म का काम  - कर दिया जाये तो गेयता कुछ अच्छी लग रही है , आपभी पढ के देख लीजियेगा , सही लगे तो परिवर्तन किया जा सकता है ॥ सादर ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2014 at 7:22pm

आपको दोहों पर प्रयास करते देख  बहुत ही अच्छा लग रहा है देर से देखे ,आज ही देहली से वापस आई हूँ प्राची जी ने कह दिया उसे दोहराना नहीं चाहती पर आपने तो अपने प्रतिउत्तर से ये मामला और उलझा दिया है ,बात तूल पकड़ सकती है आपका ईशारा भी आप ही समझ सकते हैं पाठक नहीं इसलिए पाठक जरूर पूछेंगे जो प्राची जी ने पूछा है ..... खैर  मैं तो यही कहूँगी शिज्जू भाई ने बेहतरीन प्रयास किया है दोहों पर ...इसी तरह लिखते रहिये ,शुभकामनायें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 5, 2014 at 12:44pm

आदरणीय डॉ प्राची जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी रचना पर अपने बहुमूल्य सुझाव दिये।
//यहाँ ये कड़वी बातें या ज्ञान की बातें कौन बोल रहा है, यह अस्पष्ट है//
जी यहाँ मैंने किसी व्यक्ति को केन्द्र में रख के व्यंग्य किया है। यहाँ ज्ञान बाँटने से मतलब डींगे हाँकने से है। मैंने जानबूझ कर किसी का नाम नही लिया। कुछ व्यक्ति हैं जिनके विचार मुझे व्यथित करते हैं और खुलेआम मैं विरोध भी नही कर सकता। यूँ समझ लीजिये यहाँ, मैंने अपना गुस्सा उतारना चाहा है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 5, 2014 at 11:47am

आदरणीय शिज्जू जी 

आपको दोहावली पर इतना सुन्दर प्रयास करता देख बहुत प्रसन्नता हो रही है..

विधाजन्य शिल्प की बात करूँ तो चारों दोहे एकदम शिल्प के अनुरूप हुए हैं...

आपके दोहों पर आने से पहले ये कहना चाहती हूँ..की दोहा छंद एक मुक्तक है...  यानि एक दोहा अपने आप में किसी सार्थक कथ्य को पूर्णता से समाहित करता है.. ऐसा नहीं होता कि पहले दोहे के अर्थ का कुछ अंश दुसरे दोहे से समझ आये..या पूरी दोहावली पढ़ कर समझ में आये..

घूम - घूम के देश मे, बाँट रहा है ज्ञान। 

बातें कड़वी बोलता, सत्य उसे ना मान।।..............यहाँ ये कड़वी बातें या ज्ञान की बातें कौन बोल रहा है, यह अस्पष्ट है. शिल्प पर पूरी तरह निर्दोष है ये दोहा.

 

अपना सीना तान के, करे शब्द से वार।

अन्धे उसके भक्त हैं, करते जय जयकार।।....यहाँ भी पहले दोहे वाली बात ही कहूंगी :))

 

बाँटे अपने देश को, लेके प्रभु का नाम।

उसको आता है यही, अधर्म का ही काम।।..............यहाँ भी वही बात है. साथ ही अधर्म शब्द का आतंरिक विन्यास १२१ होने के कारण सम चरण में गेयता भी अवरुद्ध है... यही और ही एक ही पद में ज़बरदस्ती के लग रहे हैं. 

 

यही देश का भाग है, यही देश का सत्य।

कोई आगे आय ना, नाग करे सो नृत्य।।........विषम चरण में 'आय न' यह आंचलिक अंश यहाँ उचित नहीं लग रहा..'न बढ़े' ये कर सकते हैं.. सत्य और नृत्य की तुकांतता भी मुझे लगता है बहुत सही नहीं है.

अपनी समझ भर कुछ सुझाने का प्रयास किया है..शायद सार्थक लगे 

लेकिन प्रथम प्रयास की दृष्टी से बहुत ही सुन्दर और सफल प्रयास है..जिसके लिए आपको हृदयतल से बहुत बहुत बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 4, 2014 at 10:57am

आप सभी ने मेरी दोहावली के प्रथम प्रयास पे गलतियों को नज़रअंदाज़ कर हिम्मत बढ़ाई है इसके लिये आभार  कोशिश करूँगा कि अगली बार आप सभी की उम्मीदों पे खरा उतरुँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
26 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service