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फिर बसंत आया (गीत) - कल्पना रामानी

रंग-रँगीले रथ पर चढ़कर।

रस-सुगंध की झोली भरकर। 

फिर बसंत आया।

 

आज नई फिर धूप खिली है।

दिशा दिशा उजली उजली है।

कुहरे वाली बीती रातें।

नया सूर्य है, सुबह नई है।

 

नई इबारत फिर गढ़ने को   

परिवर्तन लाया।

 

गाँव गाँव में झूल पड़ गए।

अमराई के भाग्य खुल गए।  

अँबुआ पर नव अंकुर फूटे।

कुहू कुहू के बोल घुल गए।

 

मृदुल तान मृदु साज़ छेड़कर

कुंज-कुंज गाया। 

 

देख-देख पशुओं का मेला।

पाखी भी उमड़े पर फैला।

खुशबू, रंग, उमंगें पल-पल,

बाँट रहा ऋतुराज नवेला।

 

सघन वनों में जैसे कोई,

जादूगर आया।

 

धरी धरा ने पीत ओढ़नी।

मुग्ध हो रहे मोर-मोरनी।

डाल-पात सब गीत-गीत हैं।

प्रीत-प्रीत हैं कंत-कामिनी।

 

हुलस हृदय ले रही हिलोरें।

हर मन अकुलाया।     

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by annapurna bajpai on February 19, 2014 at 6:45pm

आ0 कल्पना दीदी सुंदर मनभावन गीत , बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 18, 2014 at 8:44pm

बहुत सुन्दर गीत है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by ram shiromani pathak on February 17, 2014 at 10:25pm

बहुत सुन्दर आदरणीया कल्पना जी, बहुत बहुत बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 17, 2014 at 9:15pm

बहुत सुन्दर मनमोहक गीत लिखा आ ० कल्पना जी, बहुत बहुत बधाई. 

Comment by Sarita Bhatia on February 17, 2014 at 7:07pm

सुन्दर गीत 

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 17, 2014 at 6:03pm

देख-देख पशुओं का मेला।

पाखी भी उमड़े पर फैला।

खुशबू, रंग, उमंगें पल-पल,

बाँट रहा ऋतुराज नवेला।

.............................................बहुत खूब आदरणीया!

Comment by Shyam Narain Verma on February 17, 2014 at 5:26pm
बहुत सुन्दर मनभावन गीत .. बधाई .....

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