ग़ज़ल –
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
है गांवों में भी विद्यालय जहां अक्सर नहीं आते |
कभी बच्चे नहीं आते कभी टीचर नहीं आते |
अँधेरी कोठरी है चॉक और डस्टर नहीं आते |
उजाले साथ ले आयें वही अक्षर नहीं आते |
सुनो इस गाँव की बिजली सड़क सब फ़ाइलों में हैं ,
शहर से जांच करने को कभी अफ़सर नहीं आते |
हमीं चमकाते हैं गुजरात राजस्थान दिल्ली सब ,
उजाले पर हमारे घर कभी क्यों कर नहीं आते |
फफोले हैं करप्शन के उन्हें भी इल्म है इसका ,
न जाने क्यों भला बनकर कभी नश्तर नहीं आते |
ये मोटर मिल मकाँ बाज़ार दफ्तर मॉल और होटल ,
इन्हीं पिंजरों में रहते हैं कभी हम घर नहीं आते |
बहुत तेज़ी से उड़ने में अदब का घोसला टूटा ,
ख़ुदा ! तहज़ीब से पहले ही इनके पर नहीं आते |
ये दिल्ली में रहे दिल्ली को भारतवर्ष कहते हैं ,
यही वो हुक्मरां हैं जो कभी बस्तर नहीं आते |
अगर ईमान की खाते न होता खौफ़ छापों का ,
सुकूं की नींद आती ख़ाब में लॉकर नहीं आते |
उन्हें इतनी ज़ियादा है कि छत पर यान रखते हैं ,
हमें इतनी कमी है बच्चों के वाकर नहीं आते |
हमारे पांव के छाले बड़े ही सख्त हालत हैं ,
हमारी राह में भूले से भी पत्थर नहीं आते |
यकीं ख़ुद पर अगर है तो किसी की ओट क्या लेना ,
जो तीरंदाज़ होते हैं कभी छिपकर नहीं आते |
*मौलिक \ अप्रकाशित .
- अbhinav अrun
[१८०२२०१४]
Comment
हर एक शेर उम्दा वाह वाह .. sirf aur sirf matla mein "school" ke badle agar "इस्कूल" hota toh behar mein aa jaayega mere hisaab se..binamr..
आदरणीय अभिनव अरुण जी बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिये
लाजवाब ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ , हर अशआर उम्दा और बेहतरीन
आदरणीय अभिनव अरुण भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही है , आपको ढेरों बधाइयाँ , सभी अशआर खूबसूरत है , उम्दा हैं , बधाई ॥
आदरणीय , शेयर की फ़िक्र में -- ये मिसरा बेबह्र हो रहा है , एक बार देख लीजियेगा ॥
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