ग़ज़ल
फाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फैलुन
२१२२ ११२२ ११२२ २२
फूल की ख़ुशबू को हम यूं भी लुटा देते हैं |
करते हैं इश्क़ ज़माने को बता देते है |
एक चिंगारी है सीने में हवा देते हैं |
हम ग़ज़ल कहते हुए ख़ुद को सज़ा देते हैं |
जिसकी शाखों पे घरौंदों में मुहब्बत ज़िंदा ,
ऐसे पेड़ों को परिंदे भी दुआ देते हैं |
इश्क़ लहरों से अगर है तो क़िला गढ़ना क्या ,
रेत के घर को बनाते हैं मिटा देते हैं |
हम भी शेरों में बयाँ करते हैं अफ़साने को ,
और अफ़साने को तारीख़ी बना देते हैं |
हो यकीं ख़ुद पे तो सैलाबों को रुकना होगा ,
हौसले वालों को रस्ता भी ख़ुदा देते हैं |
* मौलिक एवं अप्रकाशित
- अभिनव अरुण
Comment
एक चिंगारी है सीने में हवा देते हैं |
हम ग़ज़ल कहते हुए ख़ुद को सज़ा देते हैं |
हो यकीं ख़ुद पे तो सैलाबों को रुकना होगा ,
हौसले वालों को रस्ता भी ख़ुदा देते हैं |
बहुत सुन्दर शेर हुए है आ० अभिनव अरुण जी
बहुत बहुत बधाई
एक समझदार ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई, भाई अभिनव अरुण जी.
सभी शेर अच्छे हुए हैं. दाद कुबूल करें.
शुभ-शुभ
आदरणीय श्री वीनस जी मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया , बताये अनुसार संशोधित कर लिया है , आभार !!
सर्व श्री नीरज जी , आशीष जी , अजय जी , धर्मेन्द्र जी प्रोत्साहन के लिए आभार और शुक्रिया आप सबका !!
आदरणीय श्री वीनस जी , विजय जी, शिज्जू जी हार्दिक आभार मेरा हौसला बढ़ाने केलिए !
भाई जी आपकी ग़ज़ल के लिए ढेरो ढेर दाद
हर शेर अपने आप में मुकम्मल बयान है
बस बहर के लिए ध्यान दिलाना चाहूंगा की अरकान आपने गलत लिख दिया है
ये इस प्रकार होगा
फाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फैलुन
२१२२ ११२२ ११२२ २२
हाँ ये मजेदार बात है की आपकी ग़ज़ल हर तरह से इस नयी बहर में दुरुस्त है
बहुत सुंदर ग़ज़ल आदरणीय अभिनव जी बहुत बहुत बधाई आपको
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