For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल – फूल की ख़ुशबू को हम यूं भी लुटा देते हैं

ग़ज़ल


फाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फैलुन 
२१२२   ११२२    ११२२   २२ 

फूल की ख़ुशबू को हम यूं भी लुटा देते हैं |
करते हैं इश्क़ ज़माने को बता देते है |

एक चिंगारी है सीने में हवा देते हैं |
हम ग़ज़ल कहते हुए ख़ुद को सज़ा देते हैं |

जिसकी शाखों पे घरौंदों में मुहब्बत ज़िंदा ,
ऐसे पेड़ों को परिंदे भी दुआ देते हैं |

इश्क़ लहरों से अगर है तो क़िला गढ़ना क्या ,
रेत के घर को बनाते हैं मिटा देते हैं |

हम भी शेरों में बयाँ करते हैं अफ़साने को ,
और अफ़साने को तारीख़ी बना देते हैं |

हो यकीं ख़ुद पे तो सैलाबों को रुकना होगा ,
हौसले वालों को रस्ता भी ख़ुदा देते हैं |

* मौलिक एवं अप्रकाशित

- अभिनव अरुण

Views: 732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on April 5, 2014 at 7:05pm
आभार आदरणीया Dr.Prachi Singh जी !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2014 at 5:55pm

एक चिंगारी है सीने में हवा देते हैं |
हम ग़ज़ल कहते हुए ख़ुद को सज़ा देते हैं |

हो यकीं ख़ुद पे तो सैलाबों को रुकना होगा ,
हौसले वालों को रस्ता भी ख़ुदा देते हैं |

बहुत सुन्दर शेर हुए है आ० अभिनव अरुण जी 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by Abhinav Arun on March 30, 2014 at 3:15pm
सादर आभार एवं अभिवादन आपकी कृपा के लिए आदरणीय श्री Saurabh Pandey जी !!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 1:28am

एक समझदार ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई, भाई अभिनव अरुण जी.

सभी शेर अच्छे हुए हैं. दाद कुबूल करें.

शुभ-शुभ

Comment by Abhinav Arun on March 25, 2014 at 3:09pm

आदरणीय श्री वीनस जी मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया ,  बताये अनुसार  संशोधित कर लिया है , आभार !!

Comment by Abhinav Arun on March 25, 2014 at 2:38pm

सर्व श्री नीरज जी , आशीष जी , अजय जी , धर्मेन्द्र जी प्रोत्साहन के लिए आभार और शुक्रिया आप सबका !!

Comment by Abhinav Arun on March 25, 2014 at 2:37pm

आदरणीय श्री वीनस जी , विजय जी, शिज्जू  जी हार्दिक आभार मेरा हौसला बढ़ाने केलिए !

Comment by विजय मिश्र on March 24, 2014 at 4:11pm
समूची गजल एक ऊँचे मिजाज की है और एक ही रओ में भी है मगर ये आखिरी मिसरा वाकई लाजवाब है |अनेक बधाई अरुणजी |

"हो यकीं ख़ुद पे तो सैलाबों को रुकना होगा ,
हौसले वालों को रस्ता भी ख़ुदा देते हैं |"
Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 12:56am

भाई जी आपकी ग़ज़ल के लिए ढेरो ढेर दाद
हर शेर अपने आप में मुकम्मल बयान है

बस बहर के लिए ध्यान दिलाना चाहूंगा की अरकान आपने गलत लिख दिया है

ये इस प्रकार होगा
फाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फैलुन
२१२२   ११२२    ११२२   २२

हाँ ये मजेदार बात है की आपकी ग़ज़ल हर तरह से इस नयी बहर में दुरुस्त है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 23, 2014 at 6:54pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल आदरणीय अभिनव जी बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,यह ग़ज़ल तरही ग़ज़ल के साथ ही हो गयी थी लेकिन एक ही रचना भेजने के नियम के चलते यहाँ…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यह गजल भी बहुत सुंदर हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के भी शेर अत्यंत प्रभावी बन पड़े हैं. हार्दिक बधाइयाँ…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"साथियों से मिले सुझावों के मद्दे-नज़र ग़ज़ल में परिवर्तन किया है। कृपया देखिएगा।  बड़े अनोखे…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. अजय जी ...जिस्म और रूह के सम्बन्ध में रूह को किसलिए तैयार किया जाता है यह ज़रा सा फ़लसफ़ा…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"मुशायरे की ही भाँति अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा लगा। अन्य शेर भी शानदार हुए…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ.  वैसे, कुछ मिसरों को लेकर…"
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"हार्दिक आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपकी और नीलेश जी की बातों का संज्ञान लेकर ग़ज़ल में सुधार का…"
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"ग़ज़ल पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार भाई नीलेश जी"
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"अपने प्रेरक शब्दों से उत्साहवर्धन करने के लिए आभार आदरणीय सौरभ जी। आप ने न केवल समालोचनात्मक…"
Wednesday
Jaihind Raipuri is now a member of Open Books Online
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service