दोहे
1) नारी है सुता ,दारा धारे रूप अनेक ।
बंधन बांधे नेह का धीरज धर्म विवेक ॥
2) ये नारी है सृजक नहि अबला कमजोर ।
रोम रोम ममता भरी सह पीड़ा घनघोर ॥
3) महल दुमहले बन रहे वसुधा हरी न शेष ।
जीव जन्तु भटके सभी ऐसे महल विशेष ॥
4) माया माया कर रहा बढ़े चौगुना मोह ।
पानी पत्थर पूजि के रहा मुक्ति को टोह॥
5) सन्मार्ग दो प्रभु दिखा, दो ऐसा वरदान ।
सब मिल शुचिता से रहे होवे जग कल्यान ॥
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
@@@महल दुमहले बन रहे वसुधा हरी न शेष । (शायद आप वसुधा रही न शेष कहना चाह रही हैं)
नारी सुता दारा है धारे रूप अनेक ।.……… (विषम चरण के अंत में लघु,लघु,लघु अथवा लघु,दीर्घ होना चाहिए।)
बंधन बांधे नेह का निभाये धर्म प्रत्येक ॥.… (दूसरे सम चरण में ग्यारह की बजाय तेरह मात्राएँ हो रही हैं)
नारी सृजक है नहीं ये अबला कमजोर । (प्रथम तथा तृतीय विषम चरणों में बारह मात्राएँ हैं )
वात्सल्य रस से भरी सह पीड़ा घनघोर ॥
महल दुमहले बन रहे वसुधा हरी न शेष । (शायद आप वसुधा रही न शेष रही हैं)
जीव जन्तु सभी भटके कैसे महल विशेष ॥ (जीव जंतु भटके सभी - कहने से प्रवाह अच्छा आयेगा)
माया माया कर रहा बढ़े चौगुना मोह ।
पत्थर पानी पूजि के घटे नहीं यह रोग ॥ (सुन्दर दोहा है, पूजि को पूज भी किया जा सकता है)
सन्मार्ग दिखा हे प्रभू दो ऐसा वरदान । (प्रवाह बाधित लग रहा है (प्रभु सन्मार्ग दिखाइये, दें ऐसा वरदान ) किया जा सकता है?
सब मिल शुचिता से रहे होवे देश कल्याण ॥ [सब मिल शुचिता से रहें, होवे देश महान (वरदान तथा कल्याण का तुकांत उचित नहीं माना जाता , मात्राएँ भी बारह हो रही हैं)]
आदरणीया अन्नपूर्णा जी , दोहों के माध्यम से बहुत सुन्दर बातें कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ ॥ मात्रिकता के हिसाब से एक बार फिर से मात्रा गिन के देखना चाहिये ऐसा लगता है , खास तौर पर दोहा न. 1 , 2 और 5 की मात्रा एक बार और गिन लीजिये ॥
बहुत सुन्दर दोहे बधाई .. |
Di, bahut sundar dohe. Congratulations
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