1-विवशता
मुश्किल वक्त मैं उसकी मदद नहीं कर पाया
पता है क्यों?
वह डरे व् फसे जानवर की तरह खूँखार हो गया था//
२-लौट आया
मैं वहाँ से लौट तो आया
लेकिन खुद को अधूरा छोड़कर//
३-विवादित विचार
उनका सम्बन्ध इसलिए टूटा
क्यूंकि वे
विवादित विचारों तक ही सिमटे रहे//
४-अकेलापन
बाज़ार के अकेलेपन से इतना ऊब गया हूँ कि
अपना ज्यादा से ज्यादा समय खुद के साथ बिताता हूँ//
५-शेष
मृत सपने
सूनी रातों का बूढ़ा कंकाल
धूल से पटी तस्वीरें
तुम्हे देने के लिए बस इतना ही बचा है
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
भाई रामशिरोमणिजी, आपके इस प्रयास से मन खुश है. आपको सुझाव भी सटीक मिले हैं. उनपर समुचित ध्यान दीजियेगा.
क्षणीकाओं के लिए हार्दिक बधाई.
हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश जी। ।सादर
आदरणीय राम भाई,
क्षणिकाएं अच्छी लगी। हार्दिक बधाई ।
बाज़ार के अकेलेपन से इतना ऊब गया हूँ कि
अपना ज्यादा से ज्यादा समय खुद के साथ बिताता हूँ//
बाज़ार के भीड़ भाड़ से इतना ऊब गया हूँ कि // ज़्यादा सही लग रहा है, इसलिए तो खुद के साथ एकांत में समय बिता रहे हो ।
........सादर्
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण जी......... सादर
हार्दिक आभार आदरणीय भाई जीतेन्द्र जी......... सादर
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी......... सादर
हार्दिक आभार आदरणीया सरिता जी......... सादर
हार्दिक आभार आदरणीय उपाध्याय जी......... सादर
-शेष
मृत सपने
सूनी रातों का बूढ़ा कंकाल
धूल से पटी तस्वीरें
तुम्हे देने के लिए बस इतना ही बचा है -----बहुत खूब
बहुत भावनात्मक क्षणिकाएं , बधाई आदरणीय राम भाई
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