नयनों की इस झील का, कितना निर्मल नीर।
बूँद बूँद कहती रही, देखो तल की पीर॥
वो आती हैं जब यहाँ, होता है आभास!
तपते पग को ज्यों मिले,पथ पर कोमल घास!!
मन शुक फिर बनने लगा,चखने चला रसाल !!
कितना मोहक रूप है,कितने सुन्दर गाल!!
केश कहूँ या तरु सघन,होता है यह भ्राम!!
इन केशों की छाँव में,कर लूँ मैं विश्राम!!
प्रेममयी इस झील का,अविरल मंद प्रवाह!
इसकी परिधि अमाप है,और नहीं है थाह!!
रंगों की वर्षा हुई,अनुपम यह अभिसार!!
फाग गा रही प्रकृति भी,करके नव श्रृंगार!!
ध्यान मग्न रहता सदा,प्रतिदिन आठो याम!
वेणु बजाते आइये,मेरे गृह भी श्याम!
कण कण में है वो बसे,इधर उधर चहुँ ओर!
नटखट कान्हा,कृष्ण या,कह लो माखनचोर!!
********************************************
मौलिक/अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
Comment
अमूल्य सुझाव व् अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया प्राची जी.......... सादर(पोस्ट पर विलम्ब से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ )
हार्दिक आभार आदरणीय भाई आशीष जी.......... सादर
सुन्दर दोहे हुए हैं राम शिरोमणि जी
कथ्य की तार्किकता और संप्रेषणीयता पर आ० सौरभ जी नें बहुत सम्यक बाते कही हैं.. ध्यान अवश्य ही दें
शुभकामनाएं
सुन्दर प्रेमपूर्ण दोहे हैं भाई
बधाई |
होता है आभास और होता यूँ आभास .. इन दोनों में काल एक ही है, और, अनुभूतिजन्य अभिव्यक्ति भी एक ही है. अतः भाव संप्रेषण में विशेष अंतर होता मुझे प्रतीत नहीं हुआ, भाई बृजेश जी.
पुनः कोशिश कर परखता हूँ, यदि ऐसा कोई अंतर है.
बहुत स्वादिष्ट खिचड़ी तैयार की है आपने! आपको बहुत-बहुत बधाई!
दूसरे दोहे की दूसरी पंक्ति तुलनात्मक है. इसलिए पहली पंक्ति के 'होता है आभास' की जगह 'होता यूँ आभास' या ऐसा ही कुछ होना चाहिए. यह मेरा विचार है. आपका सहमत होना आवश्यक नहीं है.
यूँ तो सारे दोहे अच्छे हैं लेकिन यह दोहा मुझे सबसे अच्छा लगा.
//कण कण में है वो बसे,इधर उधर चहुँ ओर!
नटखट कान्हा,कृष्ण या,कह लो माखनचोर!!// ........
बहुत सुंदर दोहावली, बधाई स्वीकारें आदरणीय राम जी
रंगों की वर्षा हुई,अनुपम यह अभिसार!!
फाग गा रही प्रकृति भी,करके नव श्रृंगार!!........बहुत सुंदर
शिरोमणि भार्इ जी, बहुत ही मृदु, कोमल और सुन्दर भावों से पूरित दोहो के लिए बधार्इ स्वीकारें। शेष सौरभ सर जी के कथनो पर भी ध्यान दीजिए। सादर,
बहुत सुंदर दोहे आदरणीय राम शिरोमणि जी, मन से बधाई आपको
आदरणीय सुन्दर दोहावली ,बाकी सब सौरभ सर ने कह दिया
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online