पढ़े लिखे कुछ लोग भी, दे हैरत में डाल।
बेटी भी औलाद है, फिर क्यूँ करे बवाल।।
इतनी छोटी बात भी, समझे ना इंसान।
बेटी जन्में पुत्र को, रखते कुछ तो मान।।
बेटी मेरा खून है, बेटी मेरी जान।
बेटी से ये सृष्टि है, बेटी से इंसान।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ सर ये सब आपका ही मार्गदर्शन है जिसकी वजह से मैं कुछ कर पा रहा हूँ आपका बहुत बहुत शुक्रिया
सादर,
भाई शुज्जूजी, आपके दोहों में जिस गहनता से सार्थक विचारों की अभिव्यक्ति हुई हैं. आपके कथ्य बरबस ध्यान खींचते हैं. उन्नत विचारों से पगे इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
आपके दोहों में धीरे-धीरे अपेक्षित निखार आ रहा है. यह आपकी संलग्नता का ही परिचायक है. शुभेच्छाएँ .. .
आदरणीया डॉ प्राची जी आपका हार्दिक आभार
समाज में बेटियों को जन्म से पूर्व ही मार दिया जाना, बेटा न जन्मने पर महिलाओं को ताने देना, बीटा और बेटी में भेदभावपूर्ण व्यवहार होना ...ये कुछ ऐसी ह्रदय को चीर देती कटु सच्चाइयां हैं जो किसी भी संवेदनशील ह्रदय को झकझोर देती हैं, क्रंदित कर देती हैं... आखिर क्यों नहीं समझते ये लोग बिटिया का मोल ?
इसी संवेदना को संजोकर बिटिया की मान में बहुत सुन्दर दोहे प्रस्तुत किये हैं आ० शिज्जू भाई जी
प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
रचना की सराहना के लिये आप सभी का तहेदिल से आभार
आदरणीय शिज्जु भाई,
सुंदर दोहे की हार्दिक बधाई । बेटी पर कम से कम दो दोहे और लिखते तो और अच्छा लगता , तीन दोहे कुछ कम पड़ गये.
.........सादर
वाह वाह बहुत बधाई आपको शिज्जू जी
वाह ! बहुत खूबसूरत दोहे , बधाई आपको ।
बहुत उम्दा दोहे हैं, आदरणीय शिज्जु भाई ..
आपकी सुंदर सोच को बयाँ करते शानदार दोहे ...
सुन्दर और सार्थक दोहे रचे है, बधाई
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