प्रथम प्रयास
(1)
रखती उसको हिये लगाये
सबके मन पर वो छा जाये
उसकी सूरत दिल मे उतरी
क्या सखि साजन ? न सखि मुंदरी
(2)
उसके नाम से ही डरूँ मै
होती शाम छिपती फिरूँ मै
आए जब चैन न पाऊँ क्षन भर
क्या सखि साजन ? ना सखि मच्छर
(3)
बालक बूढ़े सबको भाये
बिना उसके चैन नहि पाये
सुंदर सूरत सुनहरी चाम
क्या सखि साजन ? ना सखी आम
(4)
देख दूर से भाग पड़ूँ मै
गिरती पड़ती टिक न सकूँ मै
धूम मचाये बाहर अंदर
क्या सखि साजन ? न सखि बंदर
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीय प्राची जी के सुझावों पर गौर कीजियेगा ,आपके प्रथम प्रयास पर शुभकामनाएं
आदरणीया अन्नपूर्णा जी
इस प्रयास पर मेरी शुभकामनाएं
पर एक बात अवश्य ही सोचने की है कि कह-मुकरी विधा में कह के मुकरने की आवश्यता ही क्यों हो जाती है, जिस कारण इसे कह मुकरी कहा जाता है..
अपने साजन के बारे में बातें करना, उसके ख्यालों में रहना, यह प्रेम होने के प्रारम्भिक व स्वाभाविक ही लक्षण है और अक्सर ये बातें सबसे करीबी होने के कराण सखियाँ ही सबसे पहले भाँप लेती हैं.... और एक सखी इन्ही बातों को छुपाती भी है, इन्ही बातों पर लजाती भी है...
लेकिन अगर बात चावल या बालक की करनी हो तो मुकरने की आवश्यता किसी भी सखि को होगी ही क्यों? तो यहाँ तो कह्मुकरी विधा के जन्म लेने का कारण और इस विधा की नजाकत ही तर्कहीन हो गयी और उसका लालित्य भी यहीं ख़त्म हो गया...
हम इस विधा के होने के कारण को अवश्य ही समझें और इस विधा पर सार्थक प्रयास करें
सस्नेह शुभेच्छाएं
आपका हार्दिक आभार कल्पना जी ।
आपका आभार आ0 श्याम नारायण जी ।
ये हुई ना बात, अंजू दी बहुत -बहुत बधाई ।
बहुत खूबसूरत रचना के लिये आपको बधाई ॥ |
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