For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो होगा जो कभी न हुआ, देखते रहो 
इक दिन खुलेगा बाबे वफा, देखते रहो ...
जो शख्स मुझ से रूठ गया है वो दोस्तो
आएगा मुसकुराता हुआ, देखते रहो....
ज़िंदाने ग़म में जिसने मुझे कैद कर दिया 
वो ही करेगा मुझ को रिहा , देखते रहो...
अशकों से कैसे बनते हैं मेरी ग़ज़ल के शेर 
लिक्खेगी मेरी नोके मिज़ा देखते रहो ...
फूलों में कौन भरता है ये रंगो बू अजय 
इंसान है कोई या खुदा , देखते रहो....

मौलिक व अप्रकाशित .....

Views: 578

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Agyat on April 9, 2014 at 7:21pm

मफऊल  फायलात मफाईल फायलुन ... इस ग़ज़ल की बह्र है ..... या 221, 2121, 1221, 212/ 122 भी कह सकते हैं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 4:04pm

आदरणीय अजयजी, बधाई.

कृपया, आदरणीय गिरिराजजी के कहे पर ध्यान दें.

सादर

Comment by Saarthi Baidyanath on March 4, 2014 at 8:48am

एक बढ़िया व अच्छे अशआर से सजी ग़ज़ल ..! बधाई जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2014 at 7:38pm

आदरणीय अजय भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , हर शे र उम्दा हुये हैं । आपको बहुत बधाइयाँ ॥ आदरणीय बह्र लिख देते को और भी अच्छा होता ॥

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on March 2, 2014 at 8:53pm

वाह-वाह..बहुत खूब जनाब................सकारात्मकता को प्रबल करती रचना............

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 2, 2014 at 8:03pm

आदरणीय भाई अजय जी , बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई .

अशकों से कैसे बनते हैं मेरी ग़ज़ल के शेर 
लिक्खेगी मेरी नोके मिज़ा देखते रहो ..

इस शे'र के लिए पुनः बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
15 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service