आशिकों की आँख का मोती ग़ज़ल
देखिए , हंसती कभी रोती ग़ज़ल/१
है नफ़ासत औ मुहब्बत से पली
तरबियत के बीज भी बोती ग़ज़ल/२
इन लतीफ़ों –आफ़रीं के दरम्यां
आलमी मेयार को खोती ग़ज़ल/३
मुफ़लिसी , ये भूख औ तश्नालबी
देख ये मंजर, कहाँ सोती ग़ज़ल/४
‘सारथी’ जाया न नींदें कीजिये
रतजगा करके कहाँ होती ग़ज़ल/५
.....................................................
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
अरकान: २१२२ २१२२ २१२
Comment
आदरणीया Meena Pathak जी , आपके स्नेहिल शब्दों के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! स्नेह देते रहिएगा !
जनाब शिज्जू शकूर साहब , इन्तेहाई शुक्रगुजार हूँ ! शुक्रिया बहुत बहुत !
इक तसव्वुर के समंदर से उठी
ये मुसल्सल बहती लहरों सी ग़ज़ल....ये हुई न बात !...वाह :)
भाई बैद्यनाथजी बेहतरीन गज़ल है वाह बहुत बहुत बधाई। अर्ज किया है-
इक तसव्वुर के समंदर से उठी
ये मुसल्सल बहती लहरों सी ग़ज़ल
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ! सादर नमन आपको ! आपने नाचीज को बहुत कुछ दिया है ...प्रणाम !
आदरणीय बैद्यनाथ भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ ॥
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