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आ0 अनुराग भार्इजी, सुन्दर गजल हुर्इ है, बधार्इ स्वीाकारें। किन्तु मुझे काफिया....'कुलबुलाता' और 'जलाता' में मेल नहीं लगता है। कृपया स्पष्ट करना चाहें। सादर, आपको सपरिवार होलिकोत्सव की शुभकामनाओं सहित हार्दिक बधार्इ। सादर
पेट की मजबूरियां थीं, हम शहर में बस गए
गाँव हमको ख्वाब में वापस बुलाता रह गया
कोठियाँ बेशक मेरे बच्चों ने कर दी हैं खड़ी
पर तुम्हारी याद का उसमें अहाता रह गया........................ शानदार . बधाई
कोठियाँ बेशक मेरे बच्चों ने कर दी हैं खड़ी
पर तुम्हारी याद का उसमें अहाता रह गया
आज मुझको काम से इक रोज की फुर्सत मिली
आज दिनभर लाडला बस मुस्कुराता रह गया
badhai sunder gazal ke liye
रात इक जुगनू हवा में कुलबुलाता रह गया
रौशनी के वास्ते खुद को जलाता रह गया
पेट की मजबूरियां थीं, हम शहर में बस गए
गाँव हमको ख्वाब में वापस बुलाता रह गया
khoob bhaai ji badhaai
वाह बहुत खूब भाई अनुराग जी बहुत बहुत बधाई आपको
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