इक उसके चले जाने से कुछ पास नही है
ज़िंदा हूँ मगर जीने का एहसास नही है
वो दूर गया जब से ये बेजान है महफिल
साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है
सुनने को तिरे पास भी जब वक़्त नही तो
कहने को मिरे पास भी कुछ ख़ास नहीं है
इस रूह के आगोश में है तेरी मुहब्बत
माना के तिरा प्यार मिरे पास नही है
रावण तो ज़माने में अभी ज़िंदा रहेगा
क़िस्मत में अभी राम के बनवास नही है
फिर कैसे यक़ी तुझपे करेगा ये ज़माना,
ख़ुद तुझको ही जब अपने पे विश्वास नही है
लेकर तो चला आया समंदर में मैं कश्ती
हिम्मत के सिवा कुछ भी मिरे पास नही है
ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले
बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है
रिश्ते जो उगे झूठ की मिट्टी में है ‘सूरज’
फूलेंगे फलेंगे ये मुझे आस नही है
डॉ सूर्या बाली ‘सूरज’
Comment
वाह! बहुत खूब! शानदार ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
बहुत खूब !! आ0 सूर्या बाली जी , बहुत बधाई आपको ।
ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले
बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है ............वाह! लाजवाब, कमाल का शेर
बहुत शानदार गजल आदरणीय डा.सूर्या जी, दिली दाद कुबूल कीजिये
अब उसके सिवा कोई भी शै ख़ास नही है
ज़िंदा हूँ मगर जीने का एहसास नही है .. आहा दिल खुश हो गया पढ़कर, बहुत बढियां ..
अदरणीय सूरज जी मतले से लेकर, मकते तक के सारे अशआर लाजवाब है । बहुत करीने से एक एक अल्फ़ाज़ बिठाये है आपने बहुत बधाई आपको ......
ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले
बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है
बहुत ही सुंदर । गजल के मिसरो ने मन मोह लिया।
बहुत सुन्दर गजल आदरणीय ..........
ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले
बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है ///////
इक उसके न होने से ही बेजान है महफिल
साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है//////इन दोनों अशआरों के विशेष बधाई आपको। …… सादर
वाह बहुत सुन्दर गजल। ....... आदरणीय बाला जी हार्दिक बधाई
इक उसके न होने से ही बेजान है महफिल
साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है
……। वाह
आ0 सूरज जी बहुत दिनो बाद आप की गजल पढने को मिली ... बहुत खूबसूरत गजल के लिये आप को बधाई .....
आ. सूर्या बाली जी , खूबसूरत ग़ज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥
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