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फ़क़त दो चार पल की बात है ये
हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये
कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर
कहूँ क्या? आदमी की जात है ये
रफ़ाक़त आप कैसे कह रहे हैं ?
असल में पीठ खाई घात है ये
ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है
न समझोगे दिलों की बात है ये,
ख़िरदमन्दी - बुद्धिमानी
मेरी इस बेबसी को दो दुआयें
रफीकों से मिली सौगात है ये
जो लब खामोश,जोड़े हाथ हैं तो
समझ लो बिन लड़े ही मात है ये
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया सरिता जी , आपका हार्दिक आभार ॥
ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है
ये दिल की बात है, ज़ज्बात है ये.............वाह! बहुत खुबसूरत
हार्दिक बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी
आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक बधाई खुबसूरत गजल के लिए
आदरणीय नादिर खान भाई , ग़ज़ल की तारीफ़ कर उत्साह वर्धन करने के लिये तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय राम भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है
ये दिल की बात है, ज़ज्बात है ये...बहुत उम्दा बात कही अदरणीय गिरिराज जी
वाह वाह बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय।।।।।।।।।।हार्दिक बधाई आपको
आ. लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय भाई गिरिराज जी , बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .
ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है
ये दिल की बात है, ज़ज्बात है ये
तथा
मेरी इस बेबसी को दो दुआयें
रफीकों से मिली सौगात है ये के लिए विशेष रूप से बधाई स्वीकार करें
आदरणीय गजेन्द्र भाई , ग़ज़ल की तारीफ के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥ ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥
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