2122- 2122- 2122
दिल से निकले वो तराना चाहता हूँ
इक मसर्रत का फसाना चाहता हूँ (मसर्रत =खुशी)
देख कर मुझको छलक जायें न आँसू
तेरी खातिर मुस्कुराना चाहता हूँ
जी लिया मैंने बहुत बचते हुये अब
मुश्किलों को आजमाना चाहता हूँ
बेझिझक मै पत्थरों के शह्र जाके
उनको आईना दिखाना चाहता हूँ
सुब्ह की चुभती हुई इस धूप को मैं
अपनी आँखों से हटाना चाहता हूँ
हर ख़लिश को ओढ़कर कुछ देर को मैं
ख़्वाब में ही डूब जाना चाहता हूँ
दिन दिखाये थे मुझे हालात ने जो
मैं तुम्हें उससे बचाना चाहता हूँ
चल सको आराम से तुम सो तुम्हारे
रास्ते आसाँ बनाना चाहता हूँ
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुन्दर गजल आदरणीय शकूर जी
देख कर मुझको छलक जायें न आँसू
तेरी खातिर मुस्कुराना चाहता हूँ
वाह हार्दिक बधाई आपको
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी शिज्जू भाई
दिन दिखाये थे मुझे हालात ने जो
मैं तुम्हें उससे बचाना चाहता हूँ----बहुत उम्दा शेर
तहे दिल से बधाई सुन्दर ग़ज़ल के लिए
आदरणीय राम कुमारजी आपका आभार। से की मात्रा गिराई गई है इस तरह उसका वज्न मैंने 1 लिया है
आदरणीय श्याम नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय लक्ष्मण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। क्षमा वाली कोई बात ही नही है सुझावों का सदैव स्वागत है।
आदरणीय गिरिराज सर रचना की सराहना के लिये आपका आभार
आदरणीय अभिनव जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
दिल से निकले वो तराना चाहता हूँ ---2222+2122+2122 --???
इक मसर्रत का फसाना चाहता हूँ --2122+2122+2122
-----बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है...बधाई !!
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई |
आदरणीय शिज्जू भाई , एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .
साथ ही एक निवेदन सा है कि मुझे लगता है कि चौथे शे'र में ' उनको आईना दिखाना चाहता हूँ' की जगह ' आइना उनको दिखाना चाहता हूँ' होने से लय प्रवाह अधिक बेहतर हो जायेगा . अगर गलत हूँ तो क्षमा करें .
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