चुपके-चुपके चैत ने, घोला अपना रंग।
और बदन की स्वेद से, शुरू हो गई जंग।
पल-पल तपते सूर्य की, ऐसी बिछी बिसात।
हर बाज़ी वो जीतकर, हमें दे रहा मात।
लू लपटों ने कर लिया, दुपहर पर अधिकार।
दिन भर तनकर घूमता, दिनकर चौकीदार।
हरियाली गुम हो गई, प्रखर हो गई धूप।
पीत वर्ण अब हो चला, उद्यानों का रूप।
व्याकुल पंछी फिर रहे, सूखे कंठ उदास,
जाएँ कहाँ निरीह ये, बुझे किस तरह प्यास।
तरण ताल सूखे सभी, बालक हैं गमगीन।
वन जीवन प्यासा फिरे, जल बिन तड़पी मीन।
नमी हवा खोने लगी, मुरझाए तृण पात।
रातों की ठंडक घटी, गुमी शबनमी प्रात।
बात “कल्पना” मानिये, सेहत रखें बहाल,
सुबह-शाम टहला करें, दिन बीते खुशहाल।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ॰ प्राची जी आपकी साराहना से मन प्रफुल्लित हुआ। आपका मन से धन्यवाद
आदरणीय सौरभ जी, यहाँ तो गर्मी बहुत तेज़ हो गई है, और कुछ भाव बनते ही नहीं, वहाँ शायद कुछ देर से मौसम बदलता होगा। आपको दोहे पसंद आए, संतोष हुआ। आपका हार्दिक धन्यवाद
ग्रीष्म ऋतु पर बहुत सुन्दर दोहावली प्रस्तुत की है आ० कल्पना जी
बहुत बहुत बधाई
वाह !! ग्रीष्म का वातावरण ही नहीं तारी हुआ. पूरी ऋतु आ गयी. बहुत अच्छे दोहों के लिए हार्दिक बधाइयाँ आदरणीया कल्पनाजी.
हार्दिक शुभकामनाएँ.
प्रिय कल्पना जी, सरिता जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीया कुंती जी, आपको रचना पर देखकर सुखद अहसास हुआ। परिवार के साथ तो वैसे भी मौसम कोई भी हो अच्छा ही बीतता है,
फिर गर्मी क्यों न सुखकर होगी/सादर
आदरणीया राजेश जी, आपको दोहे पसंद आए, मन प्रफुल्लित हुआ। आपका मन से धन्यवाद
आदरणीय प्रदीप जी, सादर धन्यवाद
आदरणीय गणेश जी, रचना पर आपकी उपस्थिति से मन हर्षित हुआ। दोहों की प्रशंसात्मक टिप्पणी द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।
दी खुबसूरत दोहों के साथ गर्मी का स्वागत ,बधाई आपको
पर मौसम अजब गजब है
इसी पर पढ़िए मेरी अगली पोस्ट
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