जुड़े रहे सम्बन्ध (दोहे)- लक्ष्मण लडीवाला
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संस्कारी बच्चे बने,बुजुर्ग बने सहाय,
चले राह सन्मार्ग की, वैभव बढ़ता जाय |
मान बढे सहयोग से, सबका हल मिल जाय,
सद्गुण अरु सम्पन्नता, प्रतिदिन बढती जाय |
साथ रहे तो लाभ है, युवा समझते आज,
आजादी भी चाहते, ये तनाव का साज |
बंधिश इतनी ही रहे, टूटे नहि तटबंध
वीणा जैसे तार ये, जुड़े रहे सम्बन्ध |
मन में भरे विकार से, आपस में हो रंज
इसी वजह परिवार में, कसते रहते तंज |
एकल घर परिवार में, पले बढे जो लोग,
रहते है अवसाद में, सतत सतावे रोग |
दो पीढ़ी के मध्य में, रहे सोच में फर्क
सब सदस्य करते रहे, देखो खूब वितर्क |
तालमेल बैठे नहीं, लगे ह्रदय को जर्क,
तभी संयुक्त परिवार में,बढ़ता जाए तर्क |
बंधिहुई ही जब तलक, संबंधों की डोर,
रहे सभी का मान तो, रहे ह्रदय में ठौर |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय लछमन प्रसाद जी , आज के परिवेश मैं बेहद सटीक सन्देश देते दोहों पर आपको हार्दिक बधाई !
आदरणीय लक्ष्मण जी संदेशात्मक दोहावली के लिए हार्दिक बधाई
बहुत सुंदर संदेशप्रद दोहावली. सच! संयुक्त परिवार में युवा पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है उनका मनोबल भी बढ़ता है
एकल घर परिवार में, पले बढे जो लोग,
रहते है अवसाद में, सतत सतावे रोग.........यह दोहा बहुत गहरे दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया आपने, आपके अनुभव को नमन आदरणीय लक्ष्मण जी
क्या खूब दोहे है संयुक्त परिवारों की महत्ता को बखान करते हुये । आज की पीढ़ी को सचमुच ये समझने की आवश्यकता है । आपको बहुत बधाई आ0 लड़ी वाला जी ।
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